Chand mein chand

चांद में चांद | Chand Kavita

चांद में चांद 

( Chand mein chand )

 

दोषारोपण चाँद को स्वयं बनी चकोर है
अवसर की तलाश में ताकति चहुओर है

 

प्रियतम रिझाने को सजने-संवरने लगी
आभा लखि आपनी हुई आत्मविभोर है।

 

पायजेब की घुघरू छनकाती छन-छन
चूड़ियाँ कलाईयों की खनक बेजोर है।

 

बिंदिया ललाट की चमकती सितारों सी
गुलाबी इत्र खुशबू की नही कोई जोर है।

 

श्रृंगारित रूप-रंग देख रतिराज दंग भयो
रति सौतन डाह जलत करे तोर मोर है।

 

हवा की सरसराहट में पिय की बाट जोहे
चहुँओर शोर उठा कि चोर आया चोर है।

 

तन-मन की प्यास उसकी अधूरी रह गई
रह गई चांद में चांद ढूँढती हो गई भोर है।

 

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लेखक: त्रिवेणी कुशवाहा “त्रिवेणी”
खड्डा – कुशीनगर

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