चौखट | Chaukhat Kavita
चौखट
( Chaukhat )
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घर के बीचों-बीच खड़ा,
मजबूती से अड़ा।
आते जाते लोग रौंदते,
चप्पल जूते भी हैं घिसते;
‘चौखट’ उसे हैं कहते ।
घरवालों की मान का रक्षक
‘चौखट’
लोक लाज की रखवाली और –
है मर्यादा का सूचक!
‘चौखट’
सुनकर कितने गाली, ताने,
रक्षा करे, न बनाए बहाने !
धूप , बारिश , जाड़े से नहीं डरता,
अपना काम बखूबी करता ।
लोग माने न माने!
यह बिल्कुल बुरा न माने।
पैर पटक हैं आते हैं जाते,
खड़ी खोटी भी हैं सुनाते।
धीरज धैर्य की है प्रतिमूर्ति-
‘चौखट’
जो लांघ जाते मर्यादा की ‘चौखट’,
उनका मान-प्रतिष्ठा सब खो जाता है
‘चौखट’ की दहलीज लांघने वाला
पुनः प्रतिष्ठा न पाता है।
‘चौखट’ लांघने से पहले सोचो बारंबार,
एक बार जो लांघ गए,
दायरे से निकल गए!
मर्यादा घर की हो जाएगी,
क्षण में तार तार।
कद्र कीजिए ‘चौखट’ की
आचरण की भी!
बनाए रखिए,
बचाए रखिए।
मान-प्रतिष्ठा अपनों की!!
‘चौखट’ न लांघिए
‘चौखट’ न लांघिए।
वाह! चौखट पर इतनी सुन्दर कविता भी हो सकती है सोचा भी न था .. बहुत सुन्दर