दर्द ए जुदाई | Dard – E – Judai
दर्द ए जुदाई
( Dard – E – Judai )
दर्द ए जुदाई सहता बहुत हूँ
मैं कुछ दिनों से तन्हा बहुत हूँ
दुश्मन मेरा क्यों बनता है वो ही
मैं प्यार जिससे करता बहुत हूँ
उल्फ़त से मुझसे तुम पेश आना
मैं नफ़रतों से डरता बहुत हूँ
मिलती नहीं है खुशियाँ कहीं भी
दिल में लिये ग़म फिरता बहुत हूँ
क्यों मेरा जीना मुश्किल हुआ है
ये सोचकर मैं मरता बहुत हूँ
फिर भी सकूं इस दिल को न आये
आज़म ग़ज़ल भी सुनता बहुत हूँ