फूल तितली सनम हुए बे-रंग

क़ाफ़िया – ए स्वर की ‌बंदिश
रदीफ़ – बे-रंग
वज़्न – 2122 1212 22

फूल तितली सनम हुए बे-रंग
इंद्रधनुषी छटा दिखे बे-रंग

तेरी खुशबू जो ज़िंदगी से गई
रात-दिन मेरे हो गए बे-रंग

ये मुहब्बत सज़ा बनी है आज
दौर-ए-हिज़्राँ लगे मुझे बे-रंग

याद जब तेरी आती है मुझको
बेवफ़ा, हर वफ़ा लगे बे-रंग

मौत रस्ता नहीं जुदाई का
ज़िंदगी तेरी हो भले बे-रंग

ख्वाब इक टूटने का ऐसा दर्द
ख्वाब आते हैं सब मुझे बे-रंग

साथ में ज़ीस्त जो गुज़ारी है
हिज्र के जिस्म को छुए बे-रंग

हर सफ़र तय किया हूँ ज़ीस्त का मैं
लम्हें-लम्हें रुला दिए बे-रंग

ज़िंदगी नाम मौत का ले रही
रंग “बिंदल” तभी हुए बे-रंग

Vikas Aggarwal

विकास अग्रवाल “बिंदल”

( भोपाल )

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