
जीवन अमृत
(Jeevan Amrit )
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बाद मुद्दत के एक ख्याल आया है
जिंदगी से उठा एक सवाल आया है
हमने कैसे कांटे बोये कैसे काटा यह जीवन
कैसे हम ने बाग लगाए कैसे पाए थे कुछ फल
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भीगी चुनरिया जब फागुन में
कैसे हमने रंग चढ़ाएं
धानी रंग में रंगा स्वयं को
इंद्रधनुष के रंग बिखराये
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कब तक यूं ही खड़े रहे हम
चराग जलाकर इन हाथों में
एसा उतरा चाँद गगन से
अमृत बनकर रस बरसाये
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जला रहे हो क्यों जीवन को
यह नदिया सी धारा जैसा
कभी मिले खुद सागर में
कभी मिलाएं लघु सा झरना
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तेरे मेरे असबाबो की
इतनी सी कहानी है ये
टूट के गिरना पुनः संभलना
नव ऊर्जा से आगे बढ़ना
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आस ना हो गर जीवन में
यह माटी का पुतला ही है
नए आयामों से बढ़ने का
नाम ही देखो जीवन है
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सुनो आस की नई डगर पर
हम तुम चलते कभी ना थकते
मानव जीवन दृगभ्रमित है
सुन्दर जीवन का यही अमृत है
डॉ. अलका अरोड़ा
“लेखिका एवं थिएटर आर्टिस्ट”
प्रोफेसर – बी एफ आई टी देहरादून