अणु से संपूर्ण | Kavita Anu se Sampurn
अणु से संपूर्ण
( Anu se Sampurn )
तू बूंद से कर प्रयाण सागर का
सागर भी मिल जाता महासागर में
हो मुक्त आवागमन के बंधन चक्र से
ब्यर्थ है मोह इस झूठे संसार से
अणु कण से हि बना यह रूप मनोहर
तब अणु श्रोत की छवि होगी कैसी
मिल जाना ही है अंतिम यात्रा उस तक की
वह और हम, हम और वह बीच भिन्नता कैसी
अतीत कर्म से बने प्रा रबद्ध वश हि जन्म
भोगदंड स्वरूप हि जन्म मृत्यु का बंधन
योनियों मे रूपांतरित हो करनी पूर्ण यात्रा
इसी से सरल होता नही कभी जीवन
इर्ष्या, द्वेष, कपट, कलह, बैर भाव
यही तो हैं कारण प्रमुख भाग्य निर्माण के
अन्य जीव को देकर कष्ट चाह रहे यदि सुख कोई
हो सकता संभव भला कैसे बिन प्राण के
करुणा, दया, प्रेम, सहयोग, दान, धर्म, व्रत
ऐसे हि कुछ मार्ग मूल हैं ,बंधन मुक्त के हेतु
जाना है यदि उस पार से उस संपूर्ण तक
तो करना हि होगा तुम्हें पार यह सेतु
( मुंबई )