भोर तक | Kavita Bhor Tak
भोर तक
( Bhor Tak )
लोग तो बदल जाते हैं मौसम का रंग देखकर
मगर तुम न बदलना कभी मेरा वक्त देखकर
बड़े नाज़ों से पाला है, यकीं हो न हो तुम्हें शायद
पर तुम न बदलना कभी जमाने का ढंग देखकर
सूरत हो कैसी भी आपकी, दिल से प्यारी मुझे
समझ लेना इसे तुम बस मेरी मुस्कान देखकर
बढ़ो दिन रात मिले हर उचाई तुम्हे यही दुआ है
लोग बदलें लोग देखकर,पर तुम भी न बदलना लोग देखकर
छट जायेगा अंधेरा पर, भोर तक तो चलना होगा
कर्म हि जीवन है बेटे, कर्म तो करना हि होगा
रहा नही कल जब, तब आज को भि है रहना नहीं
चलना है भोर तक, बस लक्ष्य अपना देखकर
मोहन तिवारी
( मुंबई )
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