मैं चौराहे पर बैठा हूं | Kavita Main Chaurahe Par Baitha Hoon
मैं चौराहे पर बैठा हूं
( Main chaurahe par baitha hoon )
मैं चौराहे पर बैठा हूं सभी दिशाएं देख रहा हूं
पर कवि होने की खातिर भावों में अतिरेक रहा हूं
एक दिशा पूरब से आती
जीवन दर्शन हमें सिखाती
सत्य धर्म सुचिता मानवता
सबके शाश्वत मूल्य बताती
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर सच का अनुपम लेख रहा हूं
मैं चौराहे पर बैठा हूं सभी दिखाएं देख रहा हूं
एक दिशा पश्चिम से आती
भौतिकवादी राह दिखाती
सुरासुंदरी विषय वासना
हैं जीवन के सार बताती
पर पुरखों के संस्कार से शायद अब तक नेक रहा हूं
मैं चौराहे पर बैठा हूं सभी दिखाएं देख रहा हूं
उत्तर वाली राह निराली
हिमगिरि से लाती खुशहाली
पतित पावनी गंगा मां की
जलधारा हरषाने वाली
भारत के उज्जवल ललाट पर सच की उजली रेख रहा हूं
मैं चौराहे पर बैठा हूं सभी दिशाएं देख रहा हूं
एक दिशा दक्षिण से आती
सत असत्य का बोध कराती
लंकेश्वर का पतन राम की
जय हो का उद्घोष सुनाती
मैं शाश्वत हूं हर युग में ही बस सच का अभिषेक रहा हूं
मैं चौराहे पर बैठा हूं सभी दिशाएं देख रहा हूं
कवि : डॉक्टर// इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव
Ex BEL Ghaziabad/Ex HAL Lucknow
( उत्तर प्रदेश )