Kisan par kavita

किसान | Kisan par Kavita

किसान!

( Kisaan )

( 3 )

हर तरफ होता किसान हि किसान है
फिर भी किसान हि क्यों बेपहचान है

गर्मी हो या ठंडी गुजर रही सब खेतों में
हर मौसम में जूझ रहा वही नादान है

दाना दाना चुगकर करता जीवन यापन
तब हि हर महलों में पहुँच रहा राशन है

जीवन प्यासा मरुथल के जैसा उसका
जाम छलकते मयखानों मे, देश महान है

धन सत्ता के लोभ में, रहा खरीदा जाता
समझा जाता अब भि वह,मूरख इंसान है

मिला यही उसे क्या आज़ादी का वरदान है
बदल रहा वह भी अब, ना मूरख नादान है

मोहन तिवारी

( मुंबई )

( 2 ) 

पसीने से तर जिस्म पाँव में पड़े हैं छाले,
फिर भी सारी दुनिया को यह हैं सम्भाले,

ख़ुद दाने-दाने को तरसते हैं यह किसान,
और हमारी ज़िंदगी करते हैं यह आसान,

ग़मों के घूंट पीकर भी दे जाते हमें ख़ुशी,
दर्द जब हद से गुज़रे कर लेते ख़ुदख़ुशी,

सिखना चाहें तो सीखिए उनसे कुर्बानी,
हारके ज़िंदगी कर जाते हमपे मेहरबानी,

बुढ़ापा, जवानी और गंवा देते हैं बचपन,
ग़ैर केलिए इतना करें उनका है बड़प्पन,

इंसानियत के नाते मानें उनका एहसान,
और कोई नहीं हमें पालने वाला किसान!

Aash Hamd

आश हम्द

( पटना )

(1 ) 

देश की बुनियाद होता है किसान,
हरेक का पेट भरता है किसान।
बारी-बारी इम्तिहान मौसम लेते,
खून-पसीना देखो बहाता किसान।

चीरता है कोख जब धरती का वो,
तब जाकर अन्न उगाता है किसान।
पीकर गरल वो पिलाता है अमृत,
बादल को जमीं पे बुलाता किसान।

खेत- खलिहान यही उसका तीर्थ,
उसी की पूजा करता है किसान।
गुर्बत में वो काट देता है जिन्दगी,
रात के आंचल में सोता किसान।

फसलें गाती हैं देखो जब नग्में,
तब झूम उठता है खेत में किसान।
चाँदी के तराजू तब सपने तौलता ,
सितारों से ऊँचा दिखता किसान।

पसलियों से आँतें भले सट जातीं,
लालच की लार न टपकाता किसान।
बुनता है ख्वाब देश की तरक्की का,
धूप के झूले में है झूलता किसान।

जख्म है कितना कोई कैसे गिने,
मायूस कभी भी न होता किसान।
भुलाता है गम और उठाता है बोझ ,
पर्वत-सा जिगर वो रखता किसान।

सर पर टोकरी हाथ में फावड़ा,
काँधे पे हल लेकर चलता किसान।
उगलती तब धरती सोने का दाना,
गरीबी का जबड़ा तोड़ता किसान।

 

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )
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