Hindi Poetry On Life | Hindi Poem -पहेली
पहेली
( Paheli)
जय विजय के बीच मे लो, मै पराजित हो गया।
सामने मंजिल थी मेरी , पर मै थक के सो गया।
अपनो पे विश्वास कर मै खुद ही खुद से ठग गया।
आँख जब मेरी खुली तब तक, लवारिस हो गया।
छोड करके जा चुके थे जो मेरे अपने रहे ।
जो बचे थे अब वहाँ वो नाम के अपने रहे ।
कुछ ने छोडा कुछ ने तोडा, कुछ का समझौता रहा।
कुछ पहेली बनके आये, जो नही अपने रहे ।
जिन्दगी का फलसफा टुकडो मे ही मुझको मिला।
इक मुक्मल प्यार था जो इक से न दो से मिला
एक यादों का भँवर है दूसरी अब जिन्दगी।
एक प्रीती की लहर सी, दूसरी प्रिया मंजरी।
शब्दों मे रम कर कही मनभाव न खुल जाये अब।
शेर मन किसमे है उलझा, जान न जाये ये सब।
इक पहेली जिन्दगी है, उसमे ही उलझे रहो।
हुंकार की कविता पढो , मदमस्त मन बहके रहो।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )