प्यारा भास्कर
( Pyara bhaskar )
रोज़ाना निकलता आसमान चीरकर,
अंधेरा मिटाता आता प्यारा भास्कर।
ख़ुश होते सब सूर्य नारायण देखकर,
वन्दना करों सूरज को जल चढ़ाकर।।
देता सारे जग को प्रकाश, उजियारा,
हर लेता यह सारे ब्रह्मांड का अंधेरा।
प्यारी- प्यारी भोर लगे बहुत निराली,
सवेरे सवेरे सुहानी लगती यह लाली।।
नदियों का जल रंग जाता इस रंग में,
लहरें भी घुल जाती ये भगवा रंग में।
सिखाती है आपस में मिलकर रहना,
पक्षियों का उड़ना और रहना संग में।।
रोज़ नया भोर सब को सीखा जाता,
समय से आना जाना सबको करना।
समय को जिसने भी लिया है काम,
आज वही इंसान किया अपना नाम।।
जलवायु प्रकृति स्वच्छ रखो निरन्तर,
फिर देखें प्रकृति को हॅंसेगी खुलकर।
करों सब लोग योग व सूर्य नमस्कार,
व आपस में रहो सभी एक मिलकर।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )
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