खेल ये है तमाम रोटी का | Roti
खेल ये है तमाम रोटी का !
( Khel ye hai tamam roti ka )
सबसे ऊँचा मुक़ाम रोटी का
हर कोई है गुलाम रोटी का
अर्ज़ है सबके वास्ते कर दे
ऐ ख़ुदा इंतज़ाम रोटी का
मुफ़लिसों के लबों पे रहता है
ज़िक्र बस सुब्ह ओ शाम रोटी का
और कोई न कर सका है वो
जो है दुनिया में काम रोटी का
रूखी सूखी हों चाहे जैसी हो
कीजिये एहतराम रोटी का
सच ये है रोज़ आ नहीं पाता
मुफ़लिसों को सलाम रोटी का
नज़्र करता हूँ मैं ग़रीबों को
जो लिखा है कलाम रोटी का
चन्द ग़ज़लों को बेचकर हमने
पा लिया है इनाम रोटी का
भागते फिरते हैं ‘अहद’ जो सब
खेल ये है तमाम रोटी का !
शायर: :– अमित ‘अहद’
गाँव+पोस्ट-मुजफ़्फ़राबाद
जिला-सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश )
पिन कोड़-247129