उल्फ़त का कभी अच्छा अंजाम नहीं होता
उल्फ़त का कभी अच्छा अंजाम नहीं होता
उल्फ़त का कभी अच्छा अंजाम नहीं होता
इससे बड़ा कोई भी बदनाम नहीं होता
मैं बात नही कह पाता दिल की कभी उससे
पीने को अगर हाथों में जाम नहीं होता
हर व़क्त घेरे है यादें दिल को बहुत मेरे
हाँ यादों से ही उसकी आराम नहीं होता
हर व़क्त भरे है देखो लोग बुराई से
अच्छाई का अब कोई पैग़ाम नहीं होता
अनमोल खजाना करले कद्र दिल से इसकी
कोई भी मुहब्बत का ही दाम नहीं होता
रातों में सताती वरना बात ये ही मुझको
वो साथ अगर जो मेरे शाम नहीं होता
किसकी लगी है आज़म को ही नज़र यहां
हल मेरा कभी कोई भी काम नहीं होता