वो आंखें जो आज़म इधर होती!
वो आंखें जो आज़म इधर होती!
वो आंखें जो आज़म इधर होती!
प्यार की फ़िर उससे नज़र होती
दिल को मेरे क़रार आ जाता
हाँ अगर जो उसकी ख़बर होती
अंजुमन से चला गया उठकर
प्यार की कुछ बातें मगर होती
यूं न होते अंधेरे ग़म के फ़िर
जीस्त में खुशियों की सहर होती
वो न करती दग़ा मुहब्बत में
आहें दिल में न उम्रभर होती
जीवन में भेज दे हंसी कोई
रब अकेले न रह गुज़र होती
आती है बस नजर तन्हाई ही
मेरी आंखें आज़म जिधर होती
️
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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