दिल के घावों को कहां लोग समझ पाते है
दिल के घावों को कहां लोग समझ पाते है

दिल के घावों को कहां लोग समझ पाते है

( Dil ke ghav ko kahan log samajh pate hai )

 

 

दिल के घावों को कहां लोग समझ पाते है।
देख के भी नज़र फेर चले जाते हैं।।

 

जख़्म देते हैं सभी आज ज़माने वाले।
और समझे है के मरहम वो लगा जाते है।।

 

जिंदगी में तो कभी कद्र ना इंसांनों की।
बाद मरने के वो दिल ही में पछताते है।।

 

भूल किस्से वो पुराने क्यूं ना आगे सोचें।
सारे शिकवे वो शिकायत यूं हीं रह जाते है।।

 

आजकल फैल गई है क्यूं ये “कुमार” चुप्पी।
बिन ही अल्फ़ाज के आवाज़ सब लगाते है।।

 

लेखक: मुनीश कुमार “कुमार “

हिंदी लैक्चरर
रा.वरि.मा. विद्यालय, ढाठरथ

जींद (हरियाणा)

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