कभी आकर चली जाती है,
कभी बेवक्त चली आती है।
जरूरी हो तब नहीं आती,
कभी बरसों बरस इंतजार है कराती।
हाय कितना यह है सताती?
कितना है रूलाती ?
कब आएगी?
यह भी तो नहीं बताती!
एकदम से अचानक कभी आ धमकती है,
जाने कहां से आ टपकती है?
आकर अपनों को पीड़ा अनंत दे जाती है,
रूलाती है;
तो गैरों को खुशियां दे जाती है!
सपने किसी के तोड़ जाती है,
किसी को मालामाल कर जाती है।
आना है इसका निश्चित,
कब कहां कैसे ?
यह नहीं सुनिश्चित।
चलती है उसकी मर्जी,
लगाए कोई कितनी भी अर्जी।
है बड़ी बेदर्द!
ना ही किसी की सुनती,
ना समझती।
करे लाख कोई विनती,
नहीं किसी को छोड़ती;
बंद करती सबकी बोलती।
लिए संग उड़ जाती,
मिटा अस्तित्व खाक में मिलाती।
फिर भी दुनिया समझ न पाती,
माया मोह ही अक्सर हमें है सताती।
२
बड़ी हठीली
बड़ी अलबेली
है जीवन में सबके आती
मजा सबको चखाती
हुए बिना जज़्बाती
साथ अपने है ले जाती
ना करती भेदभाव
चाहे दीन हो या साव
देती तनिक न भाव
रहें शहर में या गांव
इसे ना किसी से लगाव
ना देखे धूप छांव
इंसाफ बराबर है करती
नहीं किसी से डरती
गजब की इसमें स्फूर्ति
भनक इसकी न लगती
कब आती?
कब ले जाती?
दुनिया देखती रह जाती!
कहानियां पीछे अनंत छोड़ जाती।