अमन का दरख्त | Aman ka Darakht
अमन का दरख्त!
( Aman ka darakht )
काँटा बोनेवाला आदमी, इंसान तो नहीं,
पर डरो नहीं उससे, वो भगवान तो नहीं।
एक आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी,
मतकर उसपे ऐतबार,नुकसान तो नहीं।
डरते हैं हम जमीं वाले ऐ! खुदा,
हम कोई फरिश्ता, कोई आसमान तो नहीं।
बारूद से पाटी जा रही है ये दुनिया,
हलाक हो रही जिन्दगी, कोई दुकान तो नहीं।
चाँद -तारों पे बस जाएँगे कुछ लोग एकदिन,
हम रोज एटम-बम से खेलें, ये शान तो नहीं।
अनपढ़ रह जाएँगे इस धरती के लोग,
न बुझेगी पेट की आग, वो सुल्तान तो नहीं।
सदियों से उलझे धागे को और न उलझा,
बात मेरी समझ, ये अनुमान तो नहीं।
बुजुर्गों को रख सर-आँखों पे, ऐ! नादां,
देंगें तुम्हें दुआ, ये कूड़ेदान तो नहीं।
ईंट-पत्थरों के जंगल में आसमां खो गया,
ये बड़े होने की कोई पहचान तो नहीं।
सीख ऐसी अदब कि परिंदा घर तलक आए,
हँसी आँखों में तैरे , कोई बखान तो नहीं।
कोई भी बोए ख्वाबों में अमन का दरख्त,
लोग पानी न दें, इतने नादान तो नहीं।
अपने चेहरे की दाग धो डाल ऐ! सफेदपोश,
तूने पैसा ही कमाया, ईमान तो नहीं।
लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )