Hindi Kavita -भारत का गौरव
भारत का गौरव
( Bharat Ka Gaurav )
राम तेरे आर्याव्रत अब, शस्त्र नही ना शास्त्र दिखे।
धर्म सनातन विघटित होकर,मात्र अंहिसा जाप करे।
शस्त्रों की पूजा करते पर, शस्त्र उठाना भूल गए,
रणचंडी का वैभव भूले, खड्ग खप्पर सब भूल गए।
परशुराम का परशु अब तो, यदा कदा ही दिखता है।
बरछी भाला बघनख ताका, कृपाण न कोई रखता है।
नही दिखा शमशीर शिवाजी,अरू प्रताप के बाद हमें,
मोहन की मुरली याद रही पर, चक्र सुदर्शन भूल गए।
नारी के अस्मित की रक्षा, लंका जलकर खाक हुई।
द्रौपदी के सम्मान के खातिर, कुरू वंश का नाश हुई।
भूल गए भारत के गौरव, मूढ सुधारक बस याद रहे,
भगत सिंह को भूल गए पर, गाँधी बाबा याद रहे।
हूक हृदय में तो रहती है, ऐसा पाठ पढाया है।
गीता के गौरव को छुपा कर, छद्म ज्ञान बरपाया है।
मन की कुण्ठा को त्यागो, हुंकार शेर लग जाने दो,
हर मन मे ज्वाला भर दो, क्यो खड्ग चलाना भूल गए।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )