मन का डर | Man ka Dar
मन का डर ( Man ka Dar ) चलते चलते न जाने कहाँ तक आ गये हैं, कामयाबी की पहली सीढ़ी शायद पा गये हैं, कुछ पाने का जूनून आँखों में है बसा हुआ मगर पहला क़दम रखूं कैसे डर ये सता रहा, ख़ुद पर इतना यक़ीन कभी किया ही नहीं, कुछ जीत लेने…
मन का डर ( Man ka Dar ) चलते चलते न जाने कहाँ तक आ गये हैं, कामयाबी की पहली सीढ़ी शायद पा गये हैं, कुछ पाने का जूनून आँखों में है बसा हुआ मगर पहला क़दम रखूं कैसे डर ये सता रहा, ख़ुद पर इतना यक़ीन कभी किया ही नहीं, कुछ जीत लेने…
लालबहादुर शास्त्री 2 अक्टूबर 1904, मुगलसराय में आई बहार,रामदुलारी का राजदुलारा,चमका बनकर अलग ही सितारा,कर्मठ, विनम्र,सरल,परिश्रमी,शांत भावी,शिक्षा में निपुण थे अनुभवी,चार भाइयों में सबसे छोटे,जीवन में उतार चढ़ाव थे इनके मोटे,अठारह अठारह का था इनका ना जाने कैसा आंकड़ा,मृत्यु के अठारह महीने तक प्रधानमंत्री का कार्यभार,उससे पहले जन्म के अठारह महीनों में पिता का साया…
आम के आम गुठलियों के दाम ( Aam ke Aam guthliyon ke daam ) आम के आम हो जाए, गुठलियों के दाम हो जाए। अंगुली टेड़ी करनी ना पड़े, अपना काम हो जाए। कविता में रस आ जाए, श्रोताओं के मन भा जाए। कलमकार रच कुछ ऐसा, दुनिया में नाम हो जाए। आम वही…
पदचिन्ह ( Padachinh ) पदचिन्हों का जमाना अब कहां पदलुपतों का जमाना अब जहां परमसत्ता को शब्द-सत्ता से च्युत करने की साजिश है जहा तिनका-तिनका जलेगा मनुज अपने ही कर्मों को ढोते-ढोते शब्द-पराक्रम की महिमा वशिष्ट ने राम को समझायी अंश मात्र जो आज हम अपनाते क्लेश नामों-निशान मिट जाता शेखर कुमार श्रीवास्तव दरभंगा(…
विपदाओं के चक्रव्यूह बाधाएं तो आतीं हैं, औ आगे भी आएंगी ! अविचल बढ़ो मार्ग पर अपने खुद ही मिट जाएंगी !! विकट समस्याओं के सम्मुख तुम तनिक नहीं घबराना ! बुद्धि,विवेक,धैर्य, कौशल से तुमको निजात है पाना !! विपदाओं के चक्रव्यूह से निकलोगे तुम कैसे ! आओ बतलाता हूं तुमको व्यूह रचो कुछ…
मन तो मन है ( Man to Man Hai ) मन तो मन है, पर मेरे मन! मान, न कर नादानी। वल्गाहीन तुरंग सदृश तू, चले राह मनमानी। रे मन! मान, न कर नादानी। सुख सपनों की मृग मरीचिका, का है यह जग पानी। प्रतिक्षण जीवन घटता जाये, मोह त्याग अभिमानी। रे मन! मान, न…
तू चल तू अनजान भले हो पर तू चल चाहे राह तेरी टेढ़ी हो या सरल पर तू चल, चलेगा तो होगा सफल बैठकर यूं ही क्या निकलेगा हल, जिंदगी में उलझने तो आना ही है, आज नहीं तो कल मंजिल पाना ही है। और तूने खुली आँखों में सपने बुने हैं, ख्वाबों वाले सपने…
पतझड़ में होती, रिश्तों की परख मनुज जीवन अद्भुत प्रेहलिका, धूप छांव सदा परिवर्तन बिंदु । दुःख कष्ट सुख वैभव क्षणिक , आशा निराशा शाश्वत सिंधु । परिवार समाज परस्पर संबंध, स्वार्थ सीमांत निर्वहन चरख । पतझड़ में होती, रिश्तों की परख ।। आर्थिक सामाजिक अन्य समस्या, प्रायः संघर्षरत मनुज अकेला । घनिष्ठता त्वरित विलोपन,…
अरुणोदय ( Arunoday ) सूरज ने अरूणिम किरणों से वातायन रंग डाला ! लगे चहकने पंछी नभ में अनुपम दृश्य निराला !! ताल तलैया नदी सरोवर मिल स्वर्णिम रस घोले! लगे चमकने खेत बाग वन पुरवाई है डोले !! देख विहंगम दृश्य प्रकृतिका खिलने लगी हैं कलियां ! तरूके शिर्ष पर चान नाच कर…
पूर्ण विराम अंत नहीं ( Purn Viram Ant Nahi ) पूर्ण विराम अंत नहीं, नए वाक्य की शुरुआत है सकारात्मक सोच प्रशस्त, नवल धवल अनुपम पथ । असफलता अधिगम बिंदु, आरूढ़ उत्साह उमंग रथ । आलोचनाएं नित प्रेरणास्पद, श्रम साधना उत्तर धात है । पूर्ण विराम अंत नहीं, नए वाक्य की शुरुआत है ।।…