कितने | Kitne
कितने
( Kitne )
पेड़ों से पत्ते बिछड़ गये कितने
इस जग उपवन से उजड़ गये कितने
सारा दिन अब ये चला रहे हैं फ़ोन
इस युग के बच्चे बिगड़ गये कितने
पहले हर कोई,गुनाहों से था दूर
इस पथ को अब तो पकड़ गये कितने
सबकी फ़रियादें,कहाँ सुनेगा रब
इस दर पर माथा रगड़ गये कितने
झूठी तारीफ़ें हुईं तो वो ख़ुश थे
सच को सुनकर वो उखड़ गये कितने
घर वालों घर से निकल के तुम देखो
बेघर सर्दी से अकड़ गये कितने
किसको फ़ुरसत है करे जो तुरपाई
आपस के रिश्ते उधड़ गये कितने
पहले फ़ुरसत थी बहुत ‘अहद’ हमको
पाबंदी में अब जकड़ गये कितने