Mahashivratri par Kavita

महाशिवरात्रि | Mahashivratri par Kavita

महाशिवरात्रि

( Mahashivratri ) 

( 2 ) 

शिव शंकर~
कण-कण में व्याप्त
भोले शंकर

सीधे सरल~
दुनिया के ख़ातिर
पीया गरल

मन को मोहे~
गंगाधर के शीश
चन्द्रमा सोहे

हे!भोलेनाथ~
भक्त तारणहार
हे!दीनानाथ

अनन्त भक्ति~
महाशिवरात्रि में
शिव ही शक्ति

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निर्मल जैन ‘नीर’
ऋषभदेव/राजस्थान

( 1 ) 

बाबा हमारा है भोला भाला शिवशंकर जिनका नाम,
जटाओं से जिनके निकलें गंगा पीते विश का जाम।
गले में सर्प हाथ में डमरु त्रिशूल रहता जिनके साथ,
भस्म रमाएं, धूणी रमाएं अद्भुत-अद्भुत करते काम।।

महाशिवरात्रि का शुभ दिन वो सबके लिए है विशेष,
वैराग्य जीवन छोड़कर शंकर गृहस्थ में किये प्रवेश।
फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि है ख़ास,
इस दिन शिवलिंग के स्वरूप में प्रथम प्रकटे महेश।।

हिंदू देवता को समर्पित जो ब्रह्मांड रचना‌ रक्षा किए,
सबसे अन्धेरी रात को महा-शिवरात्रि का नाम दिए।
हिन्दू कैलेण्डर में आध्यात्मिक महत्व रात्रि को दिये,
संपूर्ण भारत में चिन्हित कर राष्ट्रीय अवकाश किए।।

इसदिन ही भगवान शिव ने प्रथम तांडव‌ नृत्य किया,
योग व विज्ञान की उत्पत्ति शिवरात्रि को माना गया।
माता पार्वती के साथ शिव विवाह को चिंहित किया,
मूल निर्माण व संरक्षण विनाश रूप को जाना गया।।

इस दिन विवाहित व‌ अविवाहित महिला व्रत रखती,
महाशिवरात्रि पर “ओम नमः शिवाय” मन्त्र जपती।
बेलपत्र पुष्प चन्दन से स्नान एवं डमरू ध्वनि सुनती,
आक भांग और धतुरे का फल शिवजी‌ को चढ़ाती।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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