वह छुपे पत्थर के टूटने पर मीर ही ना हुई | Ghazal meer na huee
वह छुपे पत्थर के टूटने पर मीर ही ना हुई ( Vah chhupe patthar ke tootne par meer na huee ) वह छुपे पत्थर के टूटने पर मीर ही ना हुई खामोशी से क़ुबूल हुआ, तफ़्सीर ही ना हुई बिछड़ कर भी वह सुलह करना चाहती है जुर्म नहीं किया उसने कोई तो…