क्षितिज के तारे | Kavita
क्षितिज के तारे ( Kshitij ke taare ) क्षितिज के तारे टूट रहे, अपनों के प्यारे छूट रहे। खतरों के बादल मंडराये, हमसे रब हमारे रूठ रहे।। नियति का चलता खेल नया, कैसा मंजर दिखलाता है। बाजार बंद लेकिन फिर भी, कफ़न रोज बिकवाता है।। मरघट मौज मना रहा, सड़कों पर वीरानी…