Hindi Poetry | Hindi Kavita | Hindi Poem -विष प्याला
विष प्याला
( Vish Pyala )
क्रूर हृदय से अपनों ने, जीवन भर दी विष प्यालों में।
जबतक आग को हवा दी तबतक,शेर जला अंगारों में।
कोमल मन के भाव सभी, धूँ धूँकर तबतक जले मेरे,
जबतब प्रेम हृदय से जलकर,मिट ना गया मन भावों से।
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नगमस्तक भी रहा तभी तक, जबतक मन में प्रीत रहा।
क्रूर थे मन के भाव सभी के , जाना तब मुझे तीर लगा।
सारे दृश्य उभर नयनों में, छल के राज खोलते अब,
बात समझ में आई तबतक, शेर बिका भंगारों में।
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क्रोध नयन से फूट पडे, प्रतिशोध की ज्वाला धँधक उठी।
समर भूमि में खडा पार्थ सा, अपनों से मन विरत हुई।
क्या मै विष को पीकर के ,शिव शम्भू का गुणगान करू,
या फिर सारे मोह त्याग कर, जैन मुनि सा ध्यान धरू।
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या मै योगी बन कर भटकू, नटवर नागर मीरा सा।
या कौटिल्य बनू हे राघव, नाश करू घन नन्दों का।
जलता मन तन तपता मेरा, भाव भी लहू लुहान हुए,
नयनों से नीर रस बरसते ऐसे, जैसे ज्वाला फूट पडे।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे
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धन्यवाद जी??