जब मुहब्बत का खिला गुलशन नहीं | Ghazal Jab Muhabbat ka
जब मुहब्बत का खिला गुलशन नहीं ( Jab muhabbat ka khila gulshan nahi ) जब मुहब्बत का खिला गुलशन नहीं मेरा खुशियों से भरा दामन नहीं दोस्ती में खाए है कितने दग़ा अब किसी से मेरा मिलता मन नहीं मैं जिससे आटा मगर कुछ ख़रीद लूँ पास मेरे तो बचा ही धन…