
दोस्ती में बेवफ़ा है
( Dosti mein bewafa hai )
कब वफ़ा करता दग़ा है ?
दोस्ती में बेवफ़ा है
भूलनी है याद तेरी
टूटे दिल की अब सदा है
बात की है प्यार से कब
रोज रक्खा बस गिला है
प्यार के टूटे भरम सब
ज़ख्म बस गहरा मिला है
दुश्मनी का खेल है अब
प्यार का कब सिलसिला है
राह में तन्हा खड़ा हूँ
कर गया वो फ़ासिला है
किस तरह उसको बुलाऊं
गैर आज़म से हुआ है
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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