जिंदगी से ही ढ़ली ऐसी ख़ुशी है
( Jindagi Se Hi Dhali Aisi Khushi Hai )
जिंदगी से ही ढ़ली ऐसी ख़ुशी है
चोट दिल पे ही ग़मों की दें गयी है
ढूंढ़ता गलियां रहा हर शहर की मैं
की न राहों में ख़ुशी कोई मिली है
बेवफ़ाई की राहों में ही ठोकरे खायी
मंजिलें अपनी वफ़ाओ की छूटी है
है भरी कब जिंदगी खुशियों से लोगों
जिंदगी वीरान अपनी कट रही है
जिंदगी में कब ख़ुशी आये न जाने
रोज़ दर पे ही आंखें मेरी लगी है
नफ़रतों का जहर पीया है अपनों का
प्यार की कब चाय आज़म ने पी है
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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