चाय
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चाय

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अच्छी मीठी फीकी ग्रीन काली लाल

कड़क मसालेदार होती है,

नींबू वाली, धीमी आंच वाली,

दूध वाली, मलाई और बिना मलाई की,

लौंग इलायची अदरक वाली भी होती है।

मौसम और मूड के अनुसार-

लोग फरमाइश करते हैं,

तो कुछ डाक्टरों की सलाह पर-

मन मारकर फीकी ही पीने को विवश हैं।

यह हर किसी को भाती है,

जिसे सुबह सवेरे बिस्तर पर ही मिल जाए!

मानो उसकी लाटरी ही लग जाती है,

पर कईयों को तो स्वयं बनाकर पीनी पड़ती है;

यह स्थिति पीड़ादायक/दुखदाई है?

पर पीते ही सब छू-मंतर हो जाता है।

सुबह सुबह ना मिले तो मूड नहीं बनता ,

किसी काम में मन नहीं लगता?

सामने से आते देख है उछल पड़ता।

शरीर में एक अजीब सी हलचल होती है !

आंखों में चमक, बदन में फूर्ति,

सांसों को ठंडक मिलती है,

सुस्ती उदासी कहीं दूर चली जाती है;

सुबह सुबह कप दो मिल जाए?

तो नाश्ते की जरूरत नहीं रह जाती है।

यह नुकसानदायक है….

डाक्टर भी अब मना करने लगे हैं,

गैस शुगर से बचने को कहने लगे हैं।

कंपनियां भी होशियार हैं!

ग्रीन हर्बल मसाला टी लेकर आईं हैं,

शहद मिलाकर पीने को बतलायीं हैं।

आदमी भी कहां मानने वाले?

कंपनियों के भंवरजाल में तरह तरह की चाय आजमाते हैं,

फिर कुछ दिन बाद,

उसी पुरानी?

“कड़क मीठी चाय” पर आ जाते हैं।

कभी कभी शुगर बीपी भी नपवाने जाते हैं,

अभी नहीं है बीपी शुगर!

कह कह नहीं अघाते हैं।

हंसी ठिठोली के बीच दोस्तों संग बतीयाते हैं,

जो बंदे चालीस पार के होते हैं।

जिनका थोड़ा हाई हो?

वे सकुचाते हैं?

जल्दी नहीं बताते हैं,

सुबह सुबह टहलने की सलाह देकर आते हैं।

चाय का चीनी से क्या नाता?

कहकर गटकते जाते हैं।

 

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नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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