दान और दक्षिणा
( Daan aur dakshina )
मनहरण घनाक्षरी
दान दीजिए पात्र को,
दक्षिणा विप्र जो होय।
रक्तदान महादान,
जीवन बचाइए।
पात्र सुपात्र को देख,
दान जरूर कीजिए।
अन्नदान सर्वोत्तम,
भोजन खिलाइए।
अनुष्ठान करे कोई,
जप तप पूजा-पाठ।
ब्राह्मण भोजन करा,
दक्षिणा दिलाइए।
तुलादान छायादान,
कर सको कन्यादान।
त्याग की शुभ भावना,
उर मे जगाइए।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )