अब सावन के झूले
अब सावन के झूले

अब सावन के झूले

( Ab sawan ke jhoole )

 

अब सावन के झूले होंगे, मस्त चलेगी पुरवाई।
रिमझिम रिमझिम वर्षा होगी, नभ घटाएं घिर आई।

 

धानी चुनर ओढ़ धरा, मंद मंद मन मुस्काई।
बाग बगीचे पुष्प खिले, महक रही है अमराई ।

 

धरती अंबर पर्वत नदियां, उमंगों से हो भरपूर।
सरितायें सागर मिलन को, जाती होकर प्रेमातुर।

 

घट घट घुमड़े प्रेम सलोना, देश प्रेम की बहती धारा।
सीमा पर सेनानी गाते, जय मां भारती जयकारा।

 

तीज त्योहार मनाते सारे, सावन में राखी आई।
सद्भावों की लहर चली, होठों पर खुशियां छाई।

 

आओ पेड़ बचाओ भाई, वृक्षों को बांधो राखी।
रक्षा का महापर्व प्यारा, रक्षासूत्र होती राखी।

 

भाई बहन का प्रेम समाया, राखी के कच्चे धागों में।
हरियाली से भरी धरा है, फूल खिले हैं बागों में।

 

सावन की रुत बड़ी सुहानी, मन अनुराग जगाती है ।
ठंडी ठंडी बूंदे बारिश की, सबके मन को भाती है।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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