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दुनिया के मेले में हर शख्स अकेला | Kavita Duniya ka Mela

दुनिया के मेले में हर शख्स अकेला

 

अकेले ही चलना बंदे दुनिया का झमेला है।
दुनिया के मेले में यहां हर शख्स अकेला है।

आंधी और तूफानों से बाधाओं से लड़ना है।
संघर्षों से लोहा लेकर बुलंदियों पर चढ़ता है।

हिम्मत हौसला जुटा लो धीरज भी धरना है।
रंग बदलती दुनिया में संभल कर चलना है।

मुश्किलों भरा सफर है हर हाल में ढलना है।
रोशन हो जाए जमाना दीपक बन जलना है।

दो दिन की जिंदगानी चंद सांसों का रेला है।
दुनिया के मेले में यहां हर शख्स अकेला है।

प्यार के मोती लूटा लो संग ना जाए धेला है।
कारवां जुड़ता जाए जहां का हसीन मेला है।

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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