ये नवल धरा है रसिकों की | Nawal Dhara
ये नवल धरा है रसिकों की
( Ye Nawal Dhara Hai Rasiko Ki )
तुम लक्ष्मीकांत मैं रमाकांत,
तुम गुणी पूज्य मैं भी हूं शांत।
तुम हंसी ठहाकों की दुनिया,
महफ़िल में रंग जमा जाना।
ये नवल धरा है रसिकों की,
तुम आकर पुष्प खिला जाना।
मैं मनमौजी मतवाला गीतों में,
फागुनी रस राग सुनाऊंगा।
दिल के दरवाजे खुल जाए,
भाव सुमन थाल सजाऊंगा।
होली में रंग बरसे भावन,
बहारें प्रेम भरी मै लाऊंगा।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )