Ramakant Soni Hindi Poetry
Ramakant Soni Hindi Poetry

मुझको ले डूबी कविता (2)

तुलसी डूबा रामचरित में मीरा मोहन दीवानी।
मोबाइल में दुनिया डूबी पढ़े लिखे सभ्य ज्ञानी।
डूब गया वो भर जाता है कभी नहीं रहता रीता।
श्याम रंग में राधा डूबी राम रंग में माता सीता।
मुझको ले डूबी कविता

आंधियों में कश्तियां गर्व में हस्तियां डूब जाती है।
डूब डुबकर ही कलम रोशनी का दीप जलाती है।
परिवर्तन सृष्टि का नियम कहती है ये पावन गीता।
परहित सेवा में जो डूबा सच्चे मन से दिल जीता।
मुझको ले डूबी कविता

कोई जप में कोई तप में कोई ध्यान में है डूबा।
कोई धन में कोई मद में कोई ज्ञान में भर डूबा।
गहराई में जो उतरा मोती माणक उसको मिलता।
हरि भजन में जो डूबा सुखी सुरभित हो खिलता।
मुझको ले डूबी कविता

मुझको ले डूबी कविता (1)

भावों में बहता रहता हूं, मन की पीर दर्द कहता हूं।
शब्दों की माला बुनता हूं, प्रीत भरे शब्द चुनता हूं।
काव्य कलश सुधारस बरसे, अमृत धारा रस पीता।
मनमौजी मतवाला फिरता, मुझको ले डूबी कविता।
मुझको ले डूबी कविता

लिख लेता हूं गीत गजल, लेखनी की धार लिए।
काव्य के मोती सजाता, मधुर मधुर रसधार लिए।
साहित्य सेवा में तत्पर, स्वाभिमान भरकर जीता।
एक अकेला काफिला हूं, मुझको ले डूबी कविता।
मुझको ले डूबी कविता

महक जाए समां सारा, दिल से दिल के है तार जुड़े।
महफिले रोशन हो गई, फिर कल्पनाओं में हम उड़े।
कागज कलम के दम पर ही, कलमकार नित जीता।
शब्द सुमन थाल सजा लूं, हंस वाहिनीं शरण रहता।
मुझको ले डूबी कविता

पापा के जाने के बाद

वीरानी सी छाई रहती दिल को सुकून नहीं मिलता।
पापा के जाने के बाद अब कोई हुकुम नहीं चलता।

घर आंगन चौखट सूने शीतल छांव कहां से लाऊं।
उंगली थामे चलना सिखाया वो पांव कहां से लाऊं।

छत्रछाया सर पर रहती ठंडी पीपल की छांव सी।
प्रेम का झरना बहता था मस्त पुरवाई थी गांव की।

चिंता फिकर छोड़ फिरता मनमौजी मतवाला सा।
संघर्षों में रहकर भी खुशियों से हमको पाला था।

जिम्मेदारियां सर पर लादे रोज काम पर जाता हूं।
पापा के जाने के बाद सुख चैन कभी नहीं पाता हूं।

यादों में रह-रहकर चेहरा आ जाता है याद मुझे।
संस्कार शिक्षा मर्यादा आशीष करें आबाद मुझे।

पूज्य पिता का स्नेह आशीष बगिया को महकाएगा।
घर आंगन फुलवारी में खुशियों के पुष्प खिलाएगा।

सिंधु मिलन चली नदियां

लहराती बलखाती आई।
मंद मंद मुस्कुराती आई।
सरिताएं आतुर सी बहती।
जलधाराएं चली पुरवाई।

कल कल मीठा राग सुनाती।
नदी पर्वतों से होकर जाती।
मैदाने में जब उतरे सरिताएं।
खलिहानों को तर कर जाती।

इठलाती सी आई जलधारा।
हर्षित मगन हुआ किनारा।
नदियों ने स्वर संगीत सुनाया।
मन को मोहित करता प्यारा।

शीतल नीर अविरल बहता।
देखो कल कल बहती धारा।
सिंधु मिलन को चली नदियां।
दृश्य मनोरम लगता है प्यारा।

खिल जाता फूलों सा दिल

शूल की हर चुभन से जागी चेतना।
दर्द जब दिल के उस पार हो गया।

खिल जाता फूलों सा दिल ये मेरा।
नाजुक सा दिल तो प्यार हो गया।

कांटों में रहकर भी मुस्कुराया सदा।
खुशबूओं से चमन महकाया सदा।

शूल चुभते रहे दर्दे दिल सहता रहा।
धड़कनों ने दर्दे संगीत सुनाया सदा।

उनके आने से आहत हुई थी कहीं।
मन के आंगन को भी सजाया सदा।

आंधियों ने हमें रूलाकर रख दिया।
पीर सहकर प्रीत रस बरसाया सदा।

नियति के खिलौने हम

नियति के खिलौने हम किरदार निभाना है।
कब पर्दा गिर जाए अभिनय कर जाना है।

यह रंगमंच दुनिया का परिधान बदलते हैं।
नियति के नियम यहां सदियों से चलते हैं।

कभी बोल बदलते हैं कभी रोल बदलते हैं।
मूखौटो पर मूखौटे धारे कई रोज बदलते हैं।

नियति खेल गजब क्या-क्या रंग दिखाती।
सुख का सिंधु उमड़े दुखों का पहाड़ लाती।

सांसों की सरगम है दो दिन का ठिकाना।
डोर उसके हाथों में फिर लौट वही जाना।

नियति ईश्वर माया जहां सारा खेल रचाया।
वही जीवन देने वाला वही रक्षक बन आया।

लक्ष्मण रेखा

टूट रही अब लक्ष्मण रेखा, मर्यादाएं ढहती सारी।
भेष बदलकर रावण बैठे, दहलीज लांघ रही नारी।

हद पार कर फैशन फैली, संस्कारों का हनन हुआ।
डूब रही है संस्कृति हमारी, सभ्यता का पतन हुआ।

अलबेला जोगी आया, झोपड़ी द्वारे अलख जगाई।
ज्यों ही रावण कदम बढ़ाता, पावन लपटे घिर आई।

लक्ष्मण रेखा भीतर माता, ताजा फल लेकर आई।
साधु भूखा ना जाए द्वार से, रक्षक जिसके रघुराई।

रघुकुल धर्म आन बान को, माता ने कदम बढ़ाया है।
मायावी मायाजाल रचकर, सीताहरण कर पाया है।

जब-जब लक्ष्मण रेखा टूटी, रावण की लंका दहकी है।
विनाश के बादल मंडराए, श्रीराम की बगिया महकी है।

मानवीय मूल्यों को जानो ,संस्कारों को महकाओ।
आदर्शों की लक्ष्मण रेखा, तोड़कर ना तुम जाओ।

मंचों का किरदार हूं

कलम का पुजारी, मनमौजी फनकार हूं।
साधक हूं शारदे का, वाणी की झंकार हूं।

शब्दों की माला बुनता, कोई कलमकार हूं।
गीतों की लड़ियों में, सुर छेड़ती सितार हूं।

कविता के बोल मीठे, बहती सी रसधार हूं।
आशाओं का दीपक हूं, ओज भरी हुंकार हूं।

चेतना की अलख जगे, कलम का सिपाही हूं।
मनमानस छाये कविता, लेखनी की स्याही हूं।

दिलों तक दस्तक देती, वो भावों की गहराई हूं।
महक उठता मन का कोना, मधुर सी पुरवाई हूं।

शब्दों का गुलदस्ता हूं, प्यारे गीतो की बहार हूं।
काव्य छलकता कलश सुधारस की फुहार हूं।

मनमौजी मतवाला सा, कोई सृजनकार हूं।
मन को छू जाए, वो ठंडी बहती सी बयार हूं।

जागरण की ज्योत जलाऊं, कोई रचनाकार हूं।
दुनिया को दर्पण दिखाता, मंचों का किरदार हूं।

जिंदगी की किताब में

जिंदगी की किताब में भरा प्यार का दुलार है।
सुख दुख धूप छांव सा अनुभवों का सार है।

हिम्मत हौसला श्रद्धा भक्ति आस्था विश्वास है।
ठोकरो की सीख है महकता हुआ मधुमास है।

प्रीत का बरसता सा सावन पतझड़ बहार है।
जीवन के रंग बदलते खुशियों का अंबार है।

जंग भी है जीत भी दुनिया की हर रीत भी।
संघर्षों की परिभाषा संबल है मन मीत भी।

सपने सुहाने बसे गीतों के सुरीले तराने है।
जीवन की धारा में प्यार भरे अफसाने है।

उमंगों की लहरें उठती भावों का सागर है।
बाधाएं मुश्किलें हैं आशाओं का भी घर है।

त्योहारों की रौनक दीपों की मस्त बहार है।
रंगों की छटा मनभावन अपनों का प्यार है।

साथ निभाए वही मीत है

जीवन की यही रीत है, साथ निभाए वही मीत है।
नैनों से नेह बरसे, दिल से दिल की यही प्रीत है।
साथ निभाए वही मीत है

जीवन पथ पर संग चले, सुख-दुख में साथी हो।
हर आंधी तूफानों में, प्रेम पाले दीपक बाती सो।
डगर डगर पे गुनगुनाते जाए, प्यार भरा गीत है।
जिंदगी की डगर सुहानी, धड़कने सुर संगीत है।
साथ निभाए वही मीत है

नैनों की भाषा जाने, दिल की धड़कनें पहचाने।
अधरो पर आने से पहले, शब्दों का संसार जाने।
संघर्षों में संबल हो, मिल जाती हर बार जीत है।
राहों में बढ़ते रहना, पथिक पथ की यही रीत है।
साथ निभाए वही मीत है

हौसलों की ढाल बन, हिम्मत हमको दे अपार।
हर मुश्किल बाधाओं में, प्रेरणा का हो भंडार।
बुलंदियों तक पहुंचाए, सुनहरा कर दे अतीत है।
खुशियों की रसधार बहा दे, संग चले मनमीत है।
साथ निभाए वही मीत है

जख्म कहीं नासूर ना बन जाए

मन की पीर कहीं चूर ना कर जाए।
दर्दे जख्म कहीं नासूर ना बन जाए।

कह दो मन की बातें गांठे पड़ जाएगी।
कर देगी बवाल बात जो अड़ जाएगी।

व्यथा व्यर्थ कर देगी हर सुख और चैन।
घुटन भरा माहौल मन तब होगा बेचैन।

दिल का दर्द सुनाने से हल्का हो जाए।
प्यार भरे दो बोल मीठे मरहम हो जाए।

खुली हवा में आकर देखो चैन आ जाए।
मंद मंद मुस्कुरा कर देखो रैन भा जाए।

अंतर्मन की ये उथल-पुथल दूर हो जाए।
दबी हुई पीड़ा कही बढ़ नासूर हो जाए।

पीपल की ठंडी छांव में

बैठकर थोड़ा सुस्ता लो, पीपल की ठंडी छांव में।
बहती मधुर सी पुरवाई, आकर देखो मेरे गांव में।

 

दूर-दूर से तोते आते, डाल-डाल पर वो गीत गाते।
मोर नाचता मन को भाता, राहगीर उधर से जाते।

 

तपस्वी सा अचल खड़ा, लोग कहते बहुत बड़ा है।
पंछियों का आश्रय स्थल, तूफानों से खूब लड़ा है।

 

सुकून मिल जाता यहां, पीपल की ठंडी छांव में।
चौपालें रोज चलती यहां पे, हरे भरे मेरे गांव में।

 

वो चिड़िया का चहकना, पखेरू बैठते हैं डाल पे।
वो बच्चों का खेलना, रौनक रहती नन्हे गाल पे।

 

पीपल बड़े प्यार से, आसरा जहां सबको देता है।
सुख दुख की कहानी सारी, मौन रह सुन लेता है।

गर्मी से व्याकुल हो, ठौर ठिकाना नजर ना आए।
पीपल का पेड़ अडिग, हमें बहारों से पास बुलाए।

पांच साल बाद रौनक

आए आज गली में मेरे जब हाथ जोड़ते नेता।
श्वेत वस्त्र छवि मनमोहक पूरे लगते अभिनेता।

मैं प्रत्याशी खड़ा हुआ हूं वोट अमूल्य दे देना।
बहां दूंगा विकास की गंगा वोटर देख लेना।

लोकतंत्र में लोकहित जनादेश बड़ा जरूरी।
सत्ता सुख पाने को नेता शक्ति लगा दे पूरी।

पांच साल बाद यूं रौनक सड़कों पर आई।
शतरंजी मोहरों की देखो चुनावी रंगत छाई।

जनहित में जनता को भी वोट डालना होता।
चुनावी दंगल में उतरे हैं भांति भांति के नेता।

चुनावी समर का देखो शंखनाद हुआ भारी।
सियासी पारा गर्म हुआ चली चुनावी तैयारी।

राजनीति का बाजार सजा कुर्सी की चाहत में।
रणभेरी बिगुल बज रहा है वोटो की आहट में।

शीतल जल सा मन मेरा

शीतल जल सा तर हो जाऊं बहती हुई बयार सा।
झोंका मस्त पवन बन जाऊं मांझी की पतवार का।

शीतल जल सा शिव चरणों में वारि-वारि जाऊं।
श्रद्धा भक्ति भाव गीत की ज्योत बनूं जल जाऊं।

शीतल जल सा मन मेरा गंगा धारा बन जाए।
प्रीत के छेड़े तराने ये दिल दीवाना बन गाए।

वाणी की शीतलता से रिश्तों को महकाता जाऊं।
गीतों गजलो छंदों में प्यारे शब्दों के फूल खिलाऊं।

मेरे होठों पर मुस्काने हो हंसी तेरे लब पे पाऊं।
रौनक आ जाए चेहरे पे मौसम ऐसा बन जाऊं।

मृदुल विचारों का संगम मुस्कानों के मोती बांटू।
मैं बनजारा मनमौजी बन पल सुहाने से छांटू।

हंसी खुशी के प्रीत तराने गाऊं गलियों मैदाने में।
मस्त बहारें नगमे सुनाऊं गीतों गजलों गानों में।

ठंडी ठंडी मस्त हवाएं छूकर जाए तन मन को।
बन जाए रसधार कविता गुंजे व्योम गगन वो।

ओ मैया शेरांवाली

कुछ भी छुपा नहीं है माता हाल मेरा तू जाने।
तु शक्ति की दाता अंबे, आजा कष्ट मिटाने।
ओ मैया शेरांवाली

अपनों में हुआ अकेला, भक्त तेरा अलबेला।
झोली मेरी भर दे माता दरबार सजा है मेला।
अष्ट भुजाओं वाली सुन ले, लाल चुनरिया धारी।
आठों याम ध्यान धरूं, आओ करके सिंह सवारी।
ओ मैया शेरांवाली

हाथों में त्रिशूल विराजे, हे शक्ति स्वरूपा माता।
विद्या बुद्धि यश दाता, हम सबकी भाग्य विधाता।
बल वैभव भंडार भरे, दिव्य अलौकिक वरदानी।
तेरा ध्यान धरे निशदिन, मां ऋषि मुनि नर ग्यानी।
ओ मैया शेरांवाली

शंख चक्र त्रिशूल हाथ ले, अभय दान वर देती।
भक्तों की प्रतिपाली मैया, दुखड़े सारे हर लेती।
तेरी शरण में सुख की गंगा, मन की पीर तू जाने।
सुंदर सजा दरबार निराला, मां भाए भजन सुहाने।
ओ मैया शेरांवाली

दुनिया के मेले में हर शख्स अकेला

अकेले ही चलना बंदे दुनिया का झमेला है।
दुनिया के मेले में यहां हर शख्स अकेला है।

आंधी और तूफानों से बाधाओं से लड़ना है।
संघर्षों से लोहा लेकर बुलंदियों पर चढ़ता है।

हिम्मत हौसला जुटा लो धीरज भी धरना है।
रंग बदलती दुनिया में संभल कर चलना है।

मुश्किलों भरा सफर है हर हाल में ढलना है।
रोशन हो जाए जमाना दीपक बन जलना है।

दो दिन की जिंदगानी चंद सांसों का रेला है।
दुनिया के मेले में यहां हर शख्स अकेला है।

प्यार के मोती लूटा लो संग ना जाए धेला है।
कारवां जुड़ता जाए जहां का हसीन मेला है।

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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