आतुरता ना दिखलायें
सपनों को पूरा करने में
आतुरता ना दिखलायें !
जीवन है अनमोल बहुत
उसको ना व्यर्थ गवाएं !!
“जिज्ञासु” जन जल्दी बाजी में
मर्यादा लांघ न जाएं !
चादर हो जितनी अपनी बस
उतना ही पग फैलाएं !!
विपदा में भी संयम से
कल को सुखद बनाएं !
जीवन है अनमोल बहुत
उसको ना व्यर्थ गवाएं !!
आय गयो रघुराई
आय गयो रघुराई !
अवध में आय गयो रघुराई
अवध में आए गयो रघुराई !
कोई ढोल मृदंग बजावे
कोई नाचे कोई गावे
कोई रंग अबीर उड़ावे
राह में कोई फूल बिछावे
घर घर बजे बधाई !
अवध में आय गयो रघुराई
अवध में आय गयो रघुराई !
राम लाल का दर्शन होगा
पुलकित तन हर्षित मन होगा
श्रद्धा भक्ति अर्पण होगा
आज सफल यह जीवन होगा
लहर खुशी की छाई !
अवध में आय गयो रघुराई
अवध में आय गयो रघुराई !
कलयुग में ही त्रेता आयो
जन मानस में खुशियां छायो
घर आंगन में दीप जलायो
धरती पर आकाश है आयो
देव पुष्प बरसाई !
अवध में आय गयो रघुराई
अवध में आय गयो रघुराई !
गले मिले सब एक दूजे संग
फरकन लागे सब के शुभ अंग
पुर नर नारी के बदले ढंग
रंगे हुए सब खुशियों के रंग
“जिज्ञासु” देत बधाई !
अवध में आय गयो रघुराई
अवध में आय गयो रघुराई !
अहंकार
अहंकार जब आता है
बुद्धि विवेक मर जाता है!
अपने को श्रेष्ठ समझने का
भ्रम उसको हो जाता है!
औरों को तुच्छ समझने का
उसको लत लग जाता है!!
अहंकार जब आता है
बुद्धि विवेक मर जाता है!
एहसास कमी का होने पर
अपनी वो झेंप मिटाता है!
लोगों को अपमानित कर
वो अपनी कमी छुपाता है!!
अहंकार जब आता है
बुद्धि विवेक मर जाता है!!
सही गलत का होता भान नहीं
अपनों के परामर्श का ध्यान नहीं!
वो मतलब परस्त बन जाता है
दुर्दिन का सूत्रपात हो जाता है!!
अहंकार जब आता है
बुद्धि विवेक मर जाता है!
उम्मीदों का पंख
उम्मीदों का पंख लगा कर
आगे ही बढ़ते जाओ !
बाधाओं को काट छांटकर
नूतन इतिहास बनाओ !!
अपने पर विश्वास अटल हो
आस न करना औरों का !
लिख दोगे इतिहास अनोखा
तुम अपने इस जीवन का !!
डगर हो चाहे जितना दुर्गम
हिम्मत कभी न हारो !
मिल जाएगी मंजिल फिर से
पिछली भूल सुधारो !!
अमोघ अस्त्र है ज्ञानार्जन का
बात मान लो मेरी !
विपदायें सब मिट जाएंगी
पलक झपकते तेरी !!
स्वार्थी हो गए कर्णधार
स्वार्थी हो गए कर्णधार सब
भ्रष्ट हुए अधिकारी!
लूट रहे जनता को मिलकर
देखो भ्रष्टाचारी!!
सत्यमेव जयते के नीचे
विवश हुई सच्चाई !
घोटें गला न्याय तंत्र का
हर्षित आता ताई!!
जाति धर्म मजहब में बांटकर
झोली अपना भरते !
धूल झोक जनता की आँख में,
उल्लू सीधा करते !!
दाल न गलने पाए इनका
व्यूह रचो कुछ ऐसा !
“जिज्ञासु”जन, जनमत से अपने
सबक सिखाओ ऐसा!!
हम थे कितने भोले-भाले
हम थे कितने भोले-भाले,
थे हम कितने नादान !
देश का नायक कैसा हो,
था हमें नहीं ये ज्ञान !!
मक्कारों को ही हम-सब ने,
था अबतक पाला !
बहुरुपीये ही हम-सबको,
लगते थे आला !!
आस्तीन के सांपों की थी,
नहीं हमें पहिचान !
देश का नायक कैसा हो,
था नहीं हमें ये ज्ञान !!
निहित स्वार्थ में नेताओं ने,
बोया समाज में कांटा !
ऊंच-नीच धर्म मजहब में,
हम सबको है बांटा !!
बहुत दिनों के बाद मिला है,
‘जिज्ञासु’ जन ऐसा अवसर !
भेद-भाव सब भूल सभी अब,
नायक, लाएं लायक मिलकर !!
आएगी खुशहाली घर-घर,
स्वस्थ सुखी होंगे प्यारे !
भारत मां का मान बढ़ेगा,
हर्षित होंगे हम सारे !!
मतदान करें
आओ मिलकर मतदान करें ,
जन गण का उत्थान करें !
देकर अपने वोट योग्य को ,
संविधान का मान गढ़े !!
बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय,
हो जिसकी सोच !
ऐसे लोगों को ही डालें ,
हम अपना वोट !!
वंशवाद और जातिवाद पर
मारे मिलकर चोट !
ऐसे प्रयास से, मिट जाएगा
लोकतंत्र का खोट !!
इसीलिए कहते ‘जिज्ञासु’
डालो वोट दबा के !
देशद्रोही, भ्रष्टाचारी
भागेंगे दुंमदबा के !!
आएगी खुशहाली घर-घर ,
देश सबल हो जाएगा !
देखेगी दुनिया सारी फिर
राम राज्य आ जाएगा !!
भारत होगा नंबर वन, तब
होगा दुनियां में सम्मान !
अपना परचम फहराएंगे ,
होगा जन गण मन का गान !!
हम-सब हैं भारतवासी
हम-सब हैं भारतवासी
भारतवर्ष हमारा है !
जननी जन्मभूमि अपनी
प्राणों से भी प्यारा है !!
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे संग
ताजमहल भी न्यारा है !
जाति धर्म मजहब से बढ़कर
मानवता हमें प्यारा है !!
हम-सब हैं भारतवासी
भारतवर्ष हमारा है !
सर्वधर्म समभाव समन्वय सत्य
अहिंसा, आदर्श हमारा है !
सभी सुखी हों सभी स्वस्थ हों
यही संकल्प हमारा है !!
छे ऋतुओं का देश हमारा
सारे जग से न्यारा है !
जननी जन्मभूमि अपनी
प्राणों से भी प्यारा है !!
हम-सब है भारतवासी
भारतवर्ष हमारा है !
होली क्रिसमस ईद दिवाली
दिल हर्षाने वाला है !
विश्व गुरु सरताज बनेंगे
वो दिन आने वाला है !!
जिज्ञासु जन गण उठो सभी
अब शुभ दिन आने वाला है !
आगे बढ़ो तिरंगा अपना
जग में लहराने वाला है !!
हम-सब हैं भारतवासी
भारतवर्ष हमारा है !
समय और समझ
सही समय पर सही समझ
ही अपने काम है आता !
समय निकल जाने पर, समझो
समझ मूल्य हीन हो जाता !!
समय बहुत बलवान न करना
उससे कभी ढीठाई !
समय बीत जाने पर जानो
अक्ल काम नहीं आती !!
साथ समय के चलना सीखो
मिट जाएगी बाधाएं !
धीरज धैर्य और विवेक ही
जीवन भर काम आएं !!
समय, समझ हो साथ तो
समझो शुभ अवसर है !
लाभ उठा सकते हो कितना
ये तुम पर निर्भर है !!
समय के साथ समझ न हो
तो संकट सर पर मडरता !
सफल वाही होता जिज्ञासु
जो अवसर का लाभ उठता !!
अनुशासित जीवन
अनुशासित जीवन धवलधार
संयम सेवा है सद्विचार
नव जागृत प्राची किरण हार
करता जीवन में भोर सखे
ना बने कभी रणछोड़ सखे
हम सभी बने श्रम के साधक
हों मानव सेवा आराधक
भावों की भाव तरल मधुता
छक कर पीलें कर जोड़ सखे
ना बने कभी रणछोड़ सखे
“जिज्ञासु” जन मन चाह प्रबल
हो मुक्त प्रदूषित राह नवल
अनुवांशिक संस्कृति का विचार
भर देता हिय रस घोर सखे
ना बने कभी रणछोड़ सखे
अभिलाषा
सागर के वाष्पित जल से,
मैं बादल बन कर छाऊं!
फसलों और बाग वन उपवन,
की मैं प्यास बुझाऊं!!
नदी सरोवर ताल तलैया में,
इच्छित जल लहरे!
जीव जंतु जड़ चेतन को भी
मैं सरस बनाऊं!!
स्वस्थ सुखी हों जग में सारे,
ऐसा रूप सजाऊं!
शस्य श्यामला हो वसुधा अपनी
सबका मन बहलाऊं!!
‘जिज्ञासु’ तन मन अभिलाषा,
सेवा भाव उठाऊं!
दीन दुखी असहाय जनों का,
जीवन सफल बनाऊं!!
सागर के वाष्पित जल से,
मैं बादल बनकर छाऊं!
स्वर्ग सदृश वसुधा पर,
मैं सब की प्यास बुझाऊं!!
फूल और पत्थर ( मुक्तक )
बिखरे हुए राह में पत्थर,
फूल बिछे हों या हों शूल !
रुकना नहीं न झुकना सिखा,
चाहे हो मौसम प्रतिकूल !!
बाधाओं से टकराना अरु,
लड़ना अरि से सीखा है !
‘जिज्ञासु’ जन रीति यही हो,
भाव समर्पित हो ना भूल !!
गुजरेहुए लम्हें
गुजरे हुए लम्हें को भुलाया
न जा सका !
जो दर्द मिला दिल को दिखाया
न जा सका !!
अफसोस है कि नादा दिल
मानता नहीं !
रंगत कि चाहतों से गुदगुदाया
न जा सका !!
जाएं तो कहां जाएं बंधन
को तोड़कर !
रिश्तो की डोर थामे आया
न जा सका !!
दुनिया है बड़ा जालिम
कैसे दिलासा दूं !
लखते जिगर को पल भर
मनाया न जा सका !!
बिचरो न ख्वाबेगाह में
जिज्ञासु जन अभी !
पीकर जहर जमाने में
गुनगुनाया न जा सका !!
भारत की गरिमा
अभी बना हरि-हर का मंदिर,
धरा तीर्थ बन जाएगी!
आनेवाले कलमें भारत,
की गरिमा बढ़ जाएगी!!
सनातनी श्रृंगार धराके,
कण-कण में लहराएगी !
जिज्ञासु जन विश्व विजयनी,
भारत मां कह लाएगी!!
अमर कीर्ति बलिदान से भूषित,
नव विहान लहराएगा!
जिनपिंग के विस्तार नीतिका,
दाल नहीं गल पाएगा !!
पी. ओ. के. संग सियाचिन में
अमर तिरंगा अंबर में लहराएगा!
जिज्ञासु जन गण मन वाणी से,
वसुधा पर स्नेह सिन्धु लहराएगा!!
सूना घर है सूखी धरती
सूना घर है सूखी धरती,
रूठ गई हरियाली !
हुए गांव वीरान मनुज बिन,
क्यौ ऐसी बदहाली!!
समझ न आए फिर गांवों में,
खुशियां लौटाएं कैसे!
करने को कुछ बचा नहीं ,
युवाओं को बुलाए कैसे!!
विवश हुई है आज ये धरती,
कैसे इसे बचाएं !
आओ ‘जिज्ञासु’ जन मिलकर
ये संकल्प उठाएं!!
कौशल का करके विकास,
बच्चों को सबल बनाएं!
हरित,स्वेत,स्वरोजगार की,
फिर सरिता यहां बहाएं!!
गंगा,वरुणा,सरयू,यमुना से,
इनका मिलन कराएं!
तब सप्त सिंधु बनकर ये ,
सुख समृद्धि यहां छलकाएं!!
तब होगा सूनापन खाली,
फिर रौनक होगी पुनःयहां!
धरती हरी भरी तब होगी,
आएगी खुशहाली यहां!!
लहराएंगी फसलें सारी बागों में,
होगी कोयल की कूॅक यहां!
गौरैया,तोता,मैना के कलरव से,
गूंजेगी सुबहो शांम यहां!!
देखेंगे नित नाच मोर का,
होगा विहंगम दृश्य यहां!
रामराज्य आएगा अपना,
सपना होगा साकार यहां!!
है नमन् तुमको को
वीर शिरोमणि राणा प्रताप को ,
सत् सत् नमन् हमारा!
स्वाभिमान और आजादी का था ,
अनुपम लक्ष्य तुम्हरा!!
तुम जैसे वीरों का, इतिहास
ऋणी होता है!
आनेवाली पीढ़ी को भी ,
गौरव होता है!!
राष्ट्र भक्ति होता है क्या ,
ये हमने तुमसे सीखा!
देश की खातिर हंसते हंसते,
जीना मरना सीखा!!
देशद्रोही गद्दारों को सबक सिखाना,
है तुमसे ही सीखा!
आजादी के लिए विषम परिस्थितियों,
में भी लड़ना सीखा!!
आया समय पुनः वैसा ही,
है गद्दारों ने फूंफकारा !
फिर आया है काम हमें,
दिया गया गुरु मंत्र तुम्हरा!!
“जिज्ञासु” जन हैं सचेत अब,
नहीं करेंगे वो नादानी!
सबक सिखादेंगे उन सबको ,
जिसने भी भौंहें तानी!!
है जनतंत्र महान
है जनतंत्र महान
संविधान की गरिमा न्यारी
है जनतंत्र महान!
सबका साथ विकास सभी का
मूल मंत्र यह मान!
सरिया से ना देश चलेगा
नहीं जेहादी धारा है!
धर्म सनातन विश्व गुरु है
पाता जगत किनारा है!!
वर्ग भेद में सूरज डूबे
प्रलय रात चहुं छाई है!
सिर को तन से जुदा करें हम
क्या औचित्य विचारा है!!
बेशर्मी पर उतर गए क्यूं
कहां गया पहिचान!
सबका साथ विकास सभी का
मूल मंत्र लो मान!!
पद तल रौंद रहे तिनके को
भरी पड़ी यह क्यारी है!
तिनका जब आंखों में पड़ता
छा जाती लाचारी है!!
कहां गया अभिमान हमारा
कहां शक्ति का स्रोत है!
दुखती आंख मूंद लेते हैं
तिनका हम पर भारी है!!
“जिज्ञासु” मन मृगा कुलांचे
मिल्लत का हो ध्यान!
सबका साथ विकास सभी का
मूलमंत्र लो मान!!
रेल
चलना रुकना रुक कर चलना,
हमें सिखाती रेल!
जीवन में मंजिल पाने की ,
दिशा दिखाती रेल!!
आंधी पानी धूप या वर्षा,
में भी चलते जाना!
लक्ष्य प्राप्ति के लिये सदा तुम,
दृढ़संकल्प जगाना!!
ऊंच-नीच में भेद न करना,
समदृष्टि अपनाना!
सदा रेल सिखलाती हमको,
सबका भार उठाना!!
रेल सदृश बच्चों खुदको,
इतना सबल बनाओ!
विपदा में संयत रह अपना-
तुम कर्तव्य निभाओ!!
सत्य अहिंसा दया धर्म का,
सबको मार्ग दिखाओ!
आने वाले कल में तुम भी ,
यादों में बस जाओ !!
लेकर साथ सभी को उनके,
मंजिल तक पहुंचाओ !
जिज्ञासु जन हर्षित हों,सबको
आनंदित कर जाओ!!
समय आ गया है
समय आ गया है अब
आईना दिखाने का!
जो भी सच है जन-जन को
उसे बताने का!!
अपने लिए तो जीते हैं
कीड़े मकोड़े भी!
हम तो इंसान हैं यारों
यह बताने का!!
हांथों पे रख के हांथ
बैठना नहीं अच्छा!
अवसर है अपना अपना
कर्तव्य निभाने का!!
न हताश होने का
न निराश होने का!
मौका है देश हित में
करके,कुछ दिखाने का!!
सत्य सनातन की गरिमा
को बताने का !
खुद भी जगने और
औरों को जगाने का!!
समय आ गया है अब
आईना दिखाने का!
जीवन का अमृत
अनुशासन जीवन का अमृत,
है अनुपम उपहार सखे।
अतिरेक मोह की मधुशाला,
मत करना मधुपान सखे ।।
भेदभाव को मिटा, करो
समता का सिंगार सखे ।
अमृत पीकर अनुशासन का,
रच डालो इतिहास सखे ।।
मन चंचल है अति वेगवान,
विजई होता है धीरवान ।
‘जिज्ञासु’ जन रखना प्रति-पल ,
मन पर सदा लगाम सखे ।।
अनुशासन जीवन का अमृत
है अनुपम उपहार सखे ।
सबको हंसना सिखा दो
खुद भी जिओ, सबको जीना सिखा दो
तुम हो सभी के, सभी हैं तुम्हारे !
हकीकत ये सारे, जहां को बता दो
खुद भी हंसो, सबको हंसना सिखा दो!!
जहां में नहीं कोई अपना पराया
नफरत न आए फिर कभी अब दुबारा
दिल में खुशी हो, गम को भुला दो
खुद भी हंसो, सबको हंसना सिखा दो
करें सब भलाई, बुराई मिटा दो
यही राज है, जिंदगी का बता दो
“जिज्ञासु” अपने अहमको मिटा कर
खुद भी हंसो सबको हंसना सिखा दो
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”
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