अभिमान | Abhiman par Kavita
मत करना अभिमान
( Mat karna abhiman )
चाहें कितना कोई हो बलवान,
या कितना ही हो कोई धनवान।
अथवा कितना कोई हो बुद्धिमान,
अरे बन्दे तुम मत करना अभिमान।।
अभिमान से होता है सर्वनाश,
रुक जाता फिर उसका विकास।
चाहें राजा रंक अथवा हो इन्सान,
जिसने किया उसका हुआ विनाश।।
सुंदरता पे न करना अभिमान,
और नही करना मै हूं थानेदार।
नही करना मंत्री हमारा रिश्तेदार,
और ना कहना मेरा बाप जमींदार।।
कोई भी मत करना अभिमान,
हमारा है सभी से बड़ा परिवार।
एक दिन जल जाना है शमशान,
सभी से रखना अच्छे ही व्यवहार।।
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