महेन्द्र कुमार
महेन्द्र कुमार

शब्दाक्षर

शब्दाक्षर अंतर, सरित अमिय धार

हिंदी उत्संग मोहक रोहक,
सहज सरस भाषाई बोध ।
शब्द अक्षर ब्रह्म अनुपमा,
अर्थ अभिव्यंजना पथ शोध ।
आरेख छवि हर्षल प्रियल,
प्रदत्त शिक्षण अधिगम सौम्य आकार
शब्दाक्षर अंतर,सरित अमिय धार ।।

स्वर व्यंजन दिव्य योग,
भाव धरातल अति उत्तम ।
वाक्य निर्माण अद्भुत कला,
लिखना पढ़ना आराध्य श्रम ।
लिपि संग आह्लाद अनंत,
चितवन अनुभूत अपनत्व अपार ।
शब्दाक्षर अंतर, सरित अमिय धार ।।

गद्य पद्य व्याकरण अनूप,
शोभित संज्ञा सर्वनाम विशेषण ।
कारक संधि पर्याय विलोम ,
उपसर्ग प्रत्यय शुद्धता अन्वेषण ।
काव्य श्रृंगार मनोरम छटा ,
अविरल मस्त मलंग नव रस बहार ।
शब्दाक्षर अंतर, सरित अमिय धार ।।

नेह उद्गम गुरु शिष्य वृंद घट,
प्रतिभा उन्नयन सतत प्रयास ।
मृदुल समाधान क्लिष्टता पट,
राष्ट्र भक्ति उत्कर्ष उल्लास ।
हर विधा पुलकित पारंगत,
प्रगति सफलता स्पंदन सार ।
शब्दाक्षर अंतर, सरित अमिय धार ।।

विश्व दूरसंचार दिवस

इंटरनेट की अदाओं पर,सारी दुनिया मरती है

वैश्विक पटल इंटरनेट महत्ता,
आज प्राण वायु सम अहम ।
हर वय जन कायल घायल,
पुलकित अंग प्रत्यंग पैहम ।
युक्ति प्रयुक्ति आलोक पुंज,
सदा सघन तिमिर हरती है ।
इंटरनेट की अदाओं पर, सारी दुनिया मरती है ।।

दैनिक जीवन काम काज,
अंतर जाल मृदुल स्पंदन ।
त्वरित निष्पादन पारदर्शिता,
पुष्टि त्रुटि सहज संदेश मंडन ।
दक्षता कौशल अभिजागर बन,
प्रगति नव पथ प्रशस्त करती है ।
इंटरनेट की अदाओं पर,सारी दुनिया मरती है ।।

शिक्षा चिकित्सा व्यापार क्षेत्र,
अदम्य हौसलों संग उड़ान ।
संभव कर स्वप्न मालाएं,
नित नव कीर्तिमानी जड़ान ।
गमन कर समाधान पथ पर ,
समस्या मूल कारण परखती है ।
इंटरनेट की अदाओं पर, सारी दुनिया मरती है ।।

मोबाइल सही उचित प्रयोग,
वर्तमान समय मंथन बिंदु ।
सदुपयोग अंतर मैत्री भाव
ज्ञान विज्ञान नवाचारी सिंधु ।
प्रतिभा उत्कर्ष प्रेरणा रूप धर,
जीवन पट अनंत खुशियां भरती है ।
इंटरनेट की अदाओं पर, सारी दुनिया मरती है ।।

अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस

खुशियों के प्रसून खिलते,अपनत्व के उपवन में

पुलकित प्रफुल्लित अंतरतम,
प्रेम सुधा सरित प्रवाह ।
सुख समृद्धि शांति सद्भाव ,
उत्संग पटल नैतिकता अथाह ।
मान सम्मान मर्यादा परंपरा,
सुसंस्कार दीप्ति चितवन में ।
खुशियों के प्रसून खिलते, अपनत्व के उपवन में ।।

विपन्नता संकट स्थिति,
एकता रूप दिव्य कवच ।
अप्रतिम परस्पर दर्शन बिंब,
स्वप्न मालाएं स्पंदन सच ।
याचनाएं नित्य अवतरित,
त्रुटि भूल मन कर्म वचन में ।
खुशियों के प्रसून खिलते, अपनत्व के उपवन में ।।

नेह सिंधु अंतर शोभा,
आत्मिक स्पर्श प्रति पल ।
पटाक्षेप एकाकी भाव ,
कर कदम प्रतिरूप सकल ।
विलोप संकीर्ण मानसिकता,
सकारात्मकता दर्शन उन्नयन में ।
खुशियों के प्रसून खिलते, अपनत्व के उपवन में ।।

संघर्ष पथ सहभागी प्रयास,
सफलता संग उत्सविक आह्लाद ।
समस्या समाधान समग्र चिंतन,
वरिष्ठ आशीष उमंग प्रतिपाद ।
उत्तम चरित्र निर्माण कला,
संबंध महत्ता उन्मेष कनन जनन में ।
खुशियों के प्रसून खिलते, अपनत्व के उपवन में ।।

तिलक शुभता का परिचायक

हिंदू संस्कृति मस्तक शोभा,
आध्यात्मिक सात्विक पहचान ।
आत्मविश्वास अभिवृद्धि कारक,
उत्तम व्यक्तित्व ओजस्वी शान ।
मेघा बिंदु संचेतन अथाह,
ग्रह शांति अमोध फलदायक ।
तिलक शुभता का परिचायक ।।

नर नारी दोऊ सम महत्ता,
पूजा अर्चना अभिन्न अंग ।
धर्म आस्था आत्मिक स्पर्श,
आवेश हरण शीतलता कंग ।
नैतिक विचार सरित प्रवाह,
रग रग सकारात्मकता नायक ।
तिलक शुभता का परिचायक ।।

मृतिका भस्म चंदन रोली सह
सिंदूर गोपी विविधा प्रकार ।
पृथक विधान मत परंपरा,
जीवन शैली उत्सविक आधार ।
एकाग्रता स्मरण शक्ति संग,
अनंत आरोग्य आनंद विधायक ।
तिलक शुभता का परिचायक ।।

सुषुम्ना इड़ा पिंगला शोभना,
दिव्य चक्षु परम स्थान ।
आज्ञा चक्र जागृत बिंब,
तेजपुंज ललाट वरदान ।
अंतर्मन नित निर्मल पावन,
सुख समृद्धि वैभव प्रदायक ।
तिलक शुभता का परिचायक ।।

मातृ वंदना दिवस

हे मां तुझे प्रणाम

नेह सिंधु अथाह मधुरिम,
पुलक हुलस भाव सरस ।
उमड़ घुमड़ लहर लहर,
रिमझिम रिमझिम बरस ।
स्नेहिल मोहक उत्संग प्रभा,
अपनत्व अर्णव मंगल धाम ।।
हे मां तुझे प्रणाम ।।

प्रति पल संतति व्याकुलता,
तरस तरस दृग वृष्टि।
तृषित तप्त उर पीर,
तपन हर हृदय पुष्टि ।
धर मुस्कान आभा मंडल,
सुसंस्कार मंडन अविराम ।।
हे मां तुझे प्रणाम ।।

नीरस शुष्क दग्ध तन मन ,
दर्शन कर आनंद तृप्ति ।
शीतल सजल छाया कंग
अंतरतम आलोक युक्ति ।
प्रेरणा सेतु उत्सविक ज्योत,
उत्साह उमंग जोश सुकाम ।
हे मां तुझे प्रणाम ।।

पुनीत दर्श परम सौभाग्य,
घट मंदिर सदैव पावन।
पेय माध्य मृदु सरस सुधा ,
मानस खुशियां बिछावन ।
आशीष वर रज रज धन्य,
परिवेश छवि ललित ललाम ।
हे मां तुझे प्रणाम ।।

प्रकृति के उत्संग में

प्रकृति के उत्संग में, अथाह उत्साह उमंग

खिलखिलाकर हंसना,
प्रसून सदा सिखाते ।
देख कलिका श्रृंगार,
हम मंद मंद मुस्काते ।
घृणा क्रोध नित्य दूर,
उर सरित नेह तरंग ।
प्रकृति के उत्संग में,अथाह उत्साह उमंग।।

किसलिय अनुपमा संग,
झूमता यह संसार ।
डाली सदृश झुकना सीख,
दर्शित शिष्ट व्यवहार ।
कमनीय रमणीय भाव,
नित्य शोभित अंतरंग ।
प्रकृति के उत्संग में,अथाह उत्साह उमंग ।।

चारु चंद्र मरीचि अंतर,
शीतलता अनंत प्रवाह ।
कृष्ण मेघ पावन बूंदों सह,
राग मल्हार पनाह ।
अंतर्मन मृदुल पावन,
जीवन शैली संस्कारी रंग ।
प्रकृति के उत्संग में,अथाह उत्साह उमंग ।।

कोकिला स्वर लहरियां,
अप्रतिम मधुरता कारक ।
दिनकर ओजस्विता अनंत,
सघन तिमिर मूल तारक ।
पुनीत स्नेहिल स्पर्श सानिध्य,
संचरित स्फूर्ति अंग प्रत्यंग ।
प्रकृति के उत्संग में, अथाह उत्साह उमंग ।।

मैं तुम्हें चाहने लगा

नेह के अनुबंध पर,मैं तुम्हें चाहने लगा

प्रीत पथ लागी लगन ,
तन मन हो गए मगन ।
देख दिव्य अक्स तुम्हारा,
हृदय मधुर अब गाने लगा ।
नेह के अनुबंध पर,मैं तुम्हें चाहने लगा ।।

मुझे लगी जो सनक ,
सबको हो गई भनक ।
हर घड़ी हर पल ,
नशा सा अब छाने लगा ।
नेह के अनुबंध पर, मैं तुम्हें चाहने लगा ।।

हर जगह तुम्हारा रूप ,
ढलने लगा उसी अनुरूप ।
अधरों पर सबसे पहले
नाम तुम्हारा अब आने लगा ।
नेह के अनुबंध पर, मैं तुम्हें चाहने लगा ।।

अंतर्मन घुंघुरू बजने लगे ,
तुम्हारी तरह सजने लगे ।
देखकर तुम्हें धीरे धीरे,
जगत मोह अब जाने लगा ।
नेह के अनुबंध पर, मैं तुम्हें चाहने लगा ।।

श्रुतिपुट तुम्हारा स्वर ,
विरह बिंदु तुम्हीं परवर ।
तुम्हारी अप्रतिम सौरभ संग,
असीम आनंद अब आने लगा ।
नेह के अनुबंध पर,मैं तुम्हें चाहने लगा ।।

भारत मां श्री चरण नित वंदन

शीर्ष लोकतंत्र वैश्विक श्रृंगार,
शासन प्रशासन नैतिक छवि ।
सुशोभित प्रथम स्थान संविधान,
लिखित रूप अंतर ओज रवि ।
प्राण प्रियल राष्ट्र ध्वज तिरंगा,
शौर्य शांति समृद्धि भाव मंडन ।
भारत मां श्री चरण नित वंदन ।।

बाघ उपमित राष्ट्रीय पशु,
देश पक्षी शोभना मोर ।
विमल कमल राष्ट्र पुष्प,
हिंदी उत्संग भाषाई भोर ।
राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ,
सत्य अहिंसा प्रेरणा स्पंदन ।
भारत मां श्री चरण नित वंदन ।।

राष्ट्रीय वाक्य सत्य मेव जयते,
नदी पुनीत पावन मां गंगा ।
देश खेल हॉकी संग नित्य,
तन मन हर्षल चंगा ।
आस्वादन राष्ट्र मिठाई जलेबी,
परिवेश चेतन माधुर्य बंधन।
भारत मां श्री चरण नित वंदन ।।

छब्बीस जनवरी पंद्रह अगस्त सह,
दो अक्टूबर राष्ट्रीय पर्व ।
राष्ट्र गान जन गण मन,
उर हिलोरित उल्लास गर्व ।
राष्ट्र गीत वंदेमातरम वंदना,
देश प्रेम सुरभि सम चंदन ।
भारत मां श्री चरण नित वंदन ।।

मुद्रा रुपया चिह्न अशोक स्तंभ,
राष्ट्रीय फल फलराज आम ।
पोशाक खादी लिपि देवनागरी,
परम देशभक्ति प्रतीक पैगाम ।
मृदुल सानिध्य राष्ट्र वृक्ष बरगद ,
संस्कृति अंतर संस्कार प्रबंधन ।
भारत मां श्री चरण नित वंदन ।।

विश्व हास्य दिवस

हास्य सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत

पटाक्षेप एकल जीवन,
समूह भाव पुरजोर ।
नैराश्य अस्ताचल बिंदु,
आशा संचरण चारों ओर।
तन मन नित सौम्य जवां,
परिवेश खुशियां ओत प्रोत
हास्य सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत ।।

गायन कविता चुटकलों संग,
समाविष्ट नाट्य नृत्य कला ।
संकीर्ण मानसिकता विलोप,
अंतर विस्तीर्ण दीप जला ।
सुलझ जाती गुत्थियां सारी ,
जीवन आरूढ़ उत्साह उमंगी पोत ।
हास्य सकारात्मक सोच का श्रोत ।।

योग साधना सम महत्ता,
दैनिक जीवन अभिन्न अंग ।
उद्गम स्थल समस्या समाधान,
श्रृंगार सेतु लोक राग रंग ।
दूर जाति धर्म लिंग विभेद
सदा समता समानता भाव न्योत ।
हास्य सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत ।।

मृदुल मधुर विचार प्रवाह,
संप्रेषण पट मैत्री आह्लाद ।
स्नेह प्रेम भाईचारा कारक,
परिवार समाज मुस्कानी संवाद ।
आराधना स्तुति सदृश फलन,
उरस्थ प्रज्वलन आनंद ज्योत ।
हास्य सकारात्मक ऊर्जा का श्रोत ।।

हे पार्थ गांडीव उठा और युद्ध कर

रण भूमि अनुपमा अद्भुत,
पक्ष विपक्ष दोनों भाई भाई ।
रिश्ते नाते मोह बंधन,
जीवन प्रभा अथाह अकुलाई ।
कर कंपन कदम अविचल,
पर सुन कर्म चेतना शुद्ध स्वर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।

परम सौभाग्य संग्राम काल,
प्रतीक्षारत दिव्य स्वर्ग द्वार ।
पटाक्षेप मूल उर वेदना,
विस्मृत विगत प्रेम दुलार ।
अनुभूत योद्धा विराट छवि,
दूर कर सारे अंतर्द्वंद असर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।

अधर्म अनैतिकता अवसान,
रण बांकुरी दृढ़ प्रतिज्ञा ।
सत्य नित विजय भव,
युद्ध विमुखता कर्तव्य अवज्ञा ।
संकलित अनंत शौर्य ओज,
विजय अधर्म मार्ग अवरूद्ध पर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।

निष्काम कर्म प्रेरणा पुंज,
परिणाम चिंता भाव गौण ।
सहर्ष निर्वहन युद्ध संहिता ,
पाप विनाश ध्येय कोण ।
बाण चला शत्रु दल पर,
कर धर्म रक्षा हित अनिरुद्ध समर ।
हे पार्थ, गांडीव उठा और युद्ध कर ।।

कृष्ण जीवन

वेणु संग शंख स्वर,कृष्ण जीवन गीतिका में

कान्हा जीवन अद्भुत अनुपम,
अवतरण पूर्व मृत्यु भय ।
बिछोह वेदना जन्म दात्री,
लालन पालन संघर्षमय।
पर आमोद प्रमोद स्पंदन,
गौ गोप गोपियां रीतिका में।
वेणु संग शंख स्वर, कृष्ण जीवन गीतिका में ।।

सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक सह,
सर्वकालिक दिव्य छवि ।
जीवन समस्त पक्ष व्यंजना ,
हर दशा सकारात्मक सोच नवि।
समग्र विधा अप्रतिम श्रृंगार,
दूरी परस्पर संबंध मरीचिका में ।
वेणु संग शंख स्वर, कृष्ण जीवन गीतिका में ।।

श्री कृष्ण उपदेश अनुपमा,
कर्तव्य निर्वहन ओतप्रोत ।
कर्म योग निष्काम पथ,
धर्म रक्षा परम आनंद श्रोत ।
मानव देव संत योगी उपमित,
दया करुणा प्रीत सुरभि नीतिका में ।
वेणु संग शंख स्वर, कृष्ण जीवन गीतिका में ।।

भूत भविष्य चिंता व्यर्थ ,
वर्तमान महत्ता सदा अहम ।
समय काल अनंत शक्ति बिंब,
विजय भव उर मंत्र पैहम ।
प्रेम समर्पण जीवन परिभाषा,
निस्वार्थ भाव आराधना रिक्तिका में।
वेणु संग शंख स्वर, कृष्ण जीवन गीतिका में ।।

सत्य धर्म स्वीकार्यता

सत्य धर्म स्वीकार्यता, श्री कृष्ण कर्ण संवाद में

सूर्य पुत्र कर्ण अद्भुत,
धनुर्विद्या दानवीरता पर्याय ।
पर जीवन अंतर्द्वन्द अथाह,
कदम कदम श्रेय हीन अध्याय ।
मूल कारण ज्ञात उत्कंठा,
प्रश्न प्रस्तुति मार्मिक प्रवाद में ।
सत्य धर्म स्वीकार्यता, श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

मातृ त्याग अवैध संतति कलंक,
गैर क्षत्रिय गौ बाण कारण शापित।
समय पट ज्ञान विस्मृतता,
गुरु परशु राम दोषारोपित ।
धर्म संकट दर्शन युद्ध बेला,
कुंती आज्ञा अप्रतिम प्रमाद में ।
सत्य धर्म स्वीकार्यता, श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

ध्यान पूर्वक कर्ण पक्ष सुन,
कन्हाई निज व्यथा सुनाई ।
जन्म कारागार मृत्यु भय,
वय पार संदीपनी शिक्षा पाई ।
प्रणय चाह परिणय वंचित,
जन्म संग मात पिता दूरी निर्विवाद में ।।
सत्य धर्म स्वीकार्यता, श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

परस्पर निज पक्ष उत्तम,
अंत श्री कृष्ण यथार्थ उजागर ।
नियति नियत सदा अटल,
चुनौती संघर्ष मर्म भवसागर ।
तज निज कर्म वर्चस्व फल,
नित सहर्ष तत्पर शाश्वतता धन्यवाद में ।
सत्य धर्म स्वीकार्यता, श्री कृष्ण कर्ण संवाद में ।।

श्रमिक दिवस 01 मई

श्रम की अठखेलियों में, खुशियों की रवानी है

शाश्वतता अहम श्रृंगार,
सृष्टि अलौकिक नियम ।
आशा उमंग उल्लास अथाह,
समृद्धि चाहना अत्युत्तम ।
पटाक्षेप कर सघन तिमिर,
आलोक पथ बखानी है ।
श्रम की अठखेलियों में, खुशियों की रवानी है ।।

लोभ मद लालच अहंकार,
सदैव जड़ मूल अस्त ।
धर अदम्य साहस शौर्य,
आसूर्य स्वभाव पस्त ।
यथार्थ अप्रतिम आईना ,
अवरोधक दानवी मनमानी है ।
श्रम की अठखेलियों में, खुशियों की रवानी है ।।

समाज राष्ट्र दैनिक जीवन,
शुभ मंगल फलदायक ।
समस्या सही समाधान,
आदर्श चरित्र महानायक ।
धूमिल झूठ पाखंड आडंबर,
दृढ़ संकल्पी नैतिक राह दिखानी है ।
श्रम की अठखेलियों में, खुशियों की रवानी है ।।

स्नेह स्नेह विलोपन डगर,
मनगढ़ंत स्वार्थी परिभाषाएं ।
नैराश्य मरणासन्न बेला ,
उभरती आनंदी अभिलाषाएं ।
विकास प्रगति सलिल धारा,
दर्शित राष्ट्र धरा मोहक धानी है ।
श्रम की अठखेलियों में, खुशियों की रवानी है ।।

वासंतिक नवरात्र चतुर्थ

पिंड से ब्रह्मांड तक,मां कूष्मांडा का सहारा

चतुर्थ नवरात्र अहम आभा,
सर्वत्र भक्ति शक्ति वंदना ।
असीम उपासना स्तुति आह्लाद,
दर्शन आदर सत्कार अंगना ।
अनंत नमन मां मंद मुस्कान,
त्रिलोक आलोक मंगल धारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक, मां कूष्मांडा का सहारा ।।

अनूप छवि अष्ट भुजाधारी,
रज रज ओज प्रसरण।
भक्तजन अलौकिक स्पर्शन,
तन मन कांति संचरण ।
सौर मंडल अधिष्ठात्री मां,
पटाक्षेप सघन तिमिर सारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक, मां कूष्मांडा का सहारा ।।

वनराजारूढ़ अक्षय फलदायिनी,
मां रूप भव्य श्रृंगार निराला ।
कर कमंडल धनुष बाण कमल चक्र गदा,
अमृत कलश सिद्धि निधि जपमाला ।
सुख सौभाग्य कृपालु मैया,
सर्व दुःख कष्ट संकट पार उतारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक,मां कूष्मांडा का सहारा ।।

सृष्टि रचना महाकाज,
त्रिदेव अप्रतिम सहयोग ।
हरित वर्ण अति प्रिया मां ,
चाहना कुम्हड़ बलि योग ।
दैहिक दैविक भौतिक ताप मुक्ति,
बोलो मां आदि शक्ति जय जयकारा ।
पिंड से ब्रह्मांड तक, मां कूष्मांडा का सहारा ।।

कदम तरंगिनी चाह में

तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में

अंध अनुकरण अज्ञान वश,
दिशा भ्रमित मनुज पथ ।
मृग मरीचिका चमक दमक,
अर्जित अंतराल यथार्थ रथ ।
विलोप निज प्रतिभा शक्ति,
प्रतीक्षित अनुपम गाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

अस्वस्थ परस्पर प्रतिस्पर्धा,
गौण नैसर्गिक जीवन आधार ।
प्रदर्शन मंचन भौतिक सुख,
आलिंगन बिंदु स्वर हाहाकार ।
स्नेह प्रेम अपनत्व रिक्ति,
स्वार्थ सिद्धि अनंत निगाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

उत्साह उमंग रसातल,
उग्र आवेश अस्थिर चितवन ।
संसर्ग अभिलाष प्रणय पथ,
वासना आच्छादित मधुवन ।
तन सुख अनुबंधित क्षणिकाएं,
अनवरत स्पंदन जीवन थाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

अतुलित सामर्थ्य भाग्य विभेद,
कर्म धर्म निष्ठा परिणाम ।
चिन्मयी प्रभा विस्मृत बिंब,
हित निहित साध्य प्रणाम।
अपूर्ण धूमिल स्व आकलन,
लक्ष्य साधना पर सलाह में ।
तज अर्णव सुधा, कदम तरंगिनी चाह में ।।

महेन्द्र कुमार

नवलगढ़ (राजस्थान)

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