बेटी की अभिलाषा
बेटी की अभिलाषा

बेटी की अभिलाषा

( Beti ki abhilasha ) 

मां! मुझे गुरूकुल से न हटा,
साफ-साफ बता?
बात है क्या?
यूं आंखें न चुरा!
मैं अभी पढ़ना चाहती हूं,
आगे बढ़ना चाहती हूं।
किसी से नहीं हूं कम,
रोको न मेरे कदम;
तू देखी हो मेरा दम।
आरंभ से अभी तक सर्वप्रथम ही आई हूं,
न जाने कितने ईनाम भी पाई हूं?
फिर अचानक आपका बदला ये व्यवहार,
कर रहा है मुझको तार तार।
अभी से मुझको बांध न खूंटे,
ये रस्में रिवाजें हैं सब झूठे।
बेटा बेटी होवें समान,
एक ही माता-पिता की हम संतान।
फिर क्यूं एक जावे गरूकुल?
एक घर में रह मुरझाए फूल।
बोल न माता ! यह कैसा उसूल?
क्या कोई मुझसे हो गई है भूल?
बेटी थी एक झांसी की रानी,
बेटी ही थी इंदिरा गांधी।
कल्पना चावला, सुनिता विलियम्स, मैडम क्यूरी!
हमने इनकी कहानी है सुनी।
वे सब हमारी प्रेरणा हैं,
मुझको उनके ही नक्शे कदम पर चलना है।
जीवन में कुछ तो बनना है,
यही उद्देश्य यही सपना है;
बाकी सब कोरी कल्पना है।
खगोलीय घटनाओं का मुझे उद्भेदन करना है,
भविष्य का कल्पना चावला बनना है।
यही तेरी ‘बेटी का अभिलाषा’ है,
मां अब कह दो हां!
तुझसे ही मुझको आशा है।
सुन बेटी के बोल मां का हृदय पसीजा,
बोली गर्व है तुम पर,हरसंभव मदद करूंगी- पूरी करने में ‘बेटी का अभिलाषा’

 

नवाब मंजूर

लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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